SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 पार करने के लिए सर्वोत्तम नाव श्रुतसेवा ही है । श्रीसंघ की सेवा करना कर्मयोग है | आगमों पर तथा तत्त्वों पर दृढ़निष्ठा रखना, आगमों की रक्षा करना, और उनका अध्ययन करना ज्ञानयोग है । देव, गुरु, आगम और धर्म के लिए सहर्ष तन, मन और जीवन-साधन द्रव्य को भी समर्पण कर देना, इसे भक्तियोग कहते हैं। इस प्रकार त्रिपुटी संगम ही आत्मकल्याणक अमोघ उपाय है। अत: देववाचकजी के सन्मुख नन्दीसूत्र के संकलन में रत्नत्रय या योग की आराधना करना ही मुख्य हेतु रहा है I नन्दीसूत्र के संकलन में निमित्त I आज से 1500 वर्ष पहले भी ऐसा कोई आगम उपलब्ध नहीं था, जिसमें पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन हो । बीज की तरह बिखरा हुआ ज्ञान का वर्णन उस युग की तरह आज भी अनेक आगमों में उपलब्ध है । संभव है तत्कालीन उपलब्ध आगमों में से बिखरे हुए ज्ञान कणों को संगृहीत करके देववाचकंजी ने संपादित किया हो अथवा व्यवच्छिन्न हुए ज्ञानप्रवादपूर्व के शेषावशेष को संकलित करके नन्दी की रचना की हो। क्योंकि देववाचक भी पूर्वधर थे, ज्ञान का वर्णन जिस क्रम या शैली से नन्दी सूत्र में किया है, वैसा क्रम अन्य आगमों में यत्किञ्चित् रूपेण तो अवश्य है, किन्तु पूर्णतया यथास्थान संपादित नहीं है। इससे जान पड़ता है कि उस समय में शेषावशेष ज्ञान ज्ञानप्रवादपूर्व का आधार लेकर नन्दीसूत्र की रचना या संकलन किया गया हो, क्योंकि संकलन के समय दृष्टिवाद का केवल ढांचा ही रह गया था, वही देववाचकजी ने ज्यों-का-त्यों नन्दीसूत्र से निरूपित कर दिया। नन्दीसूत्र के अन्तर्गत आवश्यक व्यतिरिक्त जितने सूत्र हैं, उनमें 'नन्दी' का उल्लेख मिलता है, ऐसा क्यों ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जा सकता है कि समवायाङ्ग सूत्र में जैसे समवायाङ्ग का परिचय दिया हुआ है, वैसे ही नन्दी में नन्दी का उल्लेख किया है। प्राचीनकाल में कुछ ऐसी ही पद्धति दृष्टिगोचर होती है, जैसे कि यजुर्वेद में यजुर्वेद का उल्लेख पाया जाता हैं। यदि नन्दी को ज्ञानप्रवाद पूर्व की यत् किंचित् झांकी मान लिया जाए तो कोई अनुचित न होगा, क्योंकि इसका मूलस्रोत उक्त पूर्व ही है । उस युग में जो ज्ञानप्रवादपूर्व के अध्ययन करने में असमर्थ थे, वे भी इस सूत्र के द्वारा पाँच ज्ञान का ज्ञान सुगमतापूर्वक कर सके। संभव है, देववाचकजी ने उन्हीं को लक्ष्य में रखकर पांच ज्ञान का संकलन किया हो । परमार्थ- ज्ञानी मन्दमति शिष्यों का उद्धार जैसे हो सके, वैसा सरल एवं सुगम मार्ग प्रदर्शित करते हैं हो सकता है, अन्य निमित्तों की तरह नन्दी की रचना में यह भी एक मुख्य निमित्त हो । 1. यजु० अ० 12, मंत्र 4 37
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy