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'नन्दी' शब्द की व्याख्यां
उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय ये चार व्याख्या के मुख्य साधन हैं। इनमें नन्दीसूत्र का अन्तर्भाव कहां और किस में हो सकता है। इसका उत्तर यथास्थान व्याख्या से ही मिल जाएगा।
१. उपक्रम - जो अर्थ को अपने समीप करता है, वह उपक्रम कहलाता है । इसके पाँच भेद हैं-आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार, इन पांचों से जिस शब्द की व्याख्या की जाती है, उसे उपक्रम कहते हैं ।
आनुपूर्वी - इसके तीन भेद हैं- पूर्वानुपूर्वी, पश्चादानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । मति - श्रुतअवधि-मन:पर्यव और केवलज्ञान इस गणनानुसार जो सूत्र में क्रम रखा गया है, इसे पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। आगे चलकर अवधि - मनः पर्यव - केवल-मति और श्रुत इस क्रम से व्याख्या की गई है इस दृष्टि से अनानुपूर्वी का भी अधिकार है । किन्तु पश्चादानुपूर्वी का केवलज्ञानमनः पर्यव - अवधि-श्रुत और मति, यहां इसका अधिकार नहीं है।
नाम-नामोपक्रम के दस भेद होते हैं, जैसे कि गौण्यपद, नोगौण्यपद, आदानपद, प्रतिपक्षपद, प्राधान्यपद, अनादि सिद्धान्तपद, नामपद, अवयवपद, संयोगपद और प्रमाणपद । ज्ञान आत्मा का असाधारण गुण है । जब उससे वह समृद्धशाली बनता है, तब आनन्दानुभव होता है । इसलिए इस सूत्र का नन्दी नाम गुणसंपन्न होने से गौण्यपद में, इसमें ज्ञान की मुख्यता है, इसलिए प्राधान्यपद में; पांचज्ञान जीवास्तिकाय में ही हैं, अन्य द्रव्य में नहीं । अतः अनादि सिद्धान्तपद में अन्तर्भाव होता है। शेष पदों का यहां निषेध समझना चाहिए।
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प्रमाण-इस उपक्रम के चार भेद हैं, जैसे कि - द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाण, इनमें से इस सूत्र में भाव प्रमाण का अधिकार है। भावप्रमाण के तीन भेद हैं - गुणप्रमाण, नयप्रमाण और संख्याप्रमाण । इनमें गुणप्रमाण के दो भेद हैं- जीवगुण और अजीव गुणप्रमाण । जीवगुण प्रमाण के तीन भेद हैं- ज्ञानगुणप्रमाण, दर्शन गुणप्रमाण और चारित्रगुणप्रमाण। इनमें ज्ञानगुणप्रमाण का अधिकार है, शेष अधिकारों का निषेध है। ज्ञानगुण-प्रमाण के चार भेद हैं- प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम, इनमें से इस सूत्र का अन्तर्भाव आगम में होता है । अन्य किसी प्रमाण में नहीं, क्योंकि नन्दीसूत्र आगम है ।
वक्तव्यता- इस आगम में स्वसमय की मुख्यता है, परसमय का विवरण अधिक नहीं है, तदुभय समय का भी किंचिद् वर्णन है ।
अर्थाधिकार - इस नन्दीसूत्र में पांच ज्ञान का अधिकार है। अर्थात् पांच ज्ञान का विस्तृत विवेचन करना, यही इसका अर्थाधिकार है । इसके अनन्तर नन्दी का विवेचन निक्षेप से किया जाता है
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