SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुअक्खंधे, दस अज्झयणा, एगवीसं उद्देसणकाला, एक्कवीसं समुद्देसणकाला, बावत्तरिपयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कंड- निबद्ध - निकाइआ जिण-पण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण परूवणा आघविज्जइ, से त्तं ठाणे ॥ सूत्र ४८ ॥ छाया-अथ किं तत् स्थानम् ? स्थानेन जीवाः स्थाप्यन्ते, अजीवाः स्थाप्यन्ते, जीवाऽजीवाः स्थाप्यन्ते, स्वसमयः स्थाप्यते, परसमयः स्थाप्यते, स्वसमय - परसमयौ स्थाप्येते, लोकः स्थाप्यते, अलोकः स्थाप्यते, लोकालोकौ स्थाप्येते । स्थाने टंकानि, कूटानि, शैलाः, शिखरिणः, प्राग्भाराः, कुण्डानि, गुहाः, आकराः, द्रहाः, नद्य आख्यायन्ते । स्थाने परीता वाचनाः, संख्येयान्यनुयोगद्वाराणि, संख्येया वेढा : ( वृत्तयः ), संख्येयाः श्लोकाः, संख्येया निर्युक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः । तदंगार्थतया तृतीयमंगम्, एकः श्रुतस्कन्धः, दशाऽध्ययनानि, एकविंशतिरुद्देशनकालाः, एकविंशतिः समुद्देशनकालाः, द्वासप्ततिः पदसहस्राणि पदाग्रेण, संख्येयान्यक्षराणि, अनन्तागमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीतास्त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचिता जिन- प्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्श्यन्ते, निदर्श्यन्ते उपदर्श्यन्ते । स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरण- करण-प्ररूपणाऽऽख्यायते, तदेतत्स्थानम् ॥ सूत्र ४८ ॥ भावार्थ-शिष्य ने पूछा- भगवन् ! वह स्थानांगश्रुत क्या है ? आचार्य उत्तर में बोलेस्थानांग में अथवा स्थानांग के द्वारा जीव स्थापन किए जाते हैं, अजीव स्थापन किए जाते हैं और जीवाजीव की स्थापना की जाती है। स्वसमय - जैन सिद्धान्त की स्थापना की जाती है। परसमय - जैनेतर सिद्धान्तों की स्थापना की जाती है। एवं जैन व जैनेतर उभय पक्षों की स्थापना की जाती है। लोक, अलोक और लोकालोक की स्थापना की जाती है। स्थान में व स्थानांग के द्वारा टङ्क - छिन्नतट, पर्वतकूट, पर्वत, शिखरि पर्वत, कूट के ऊपर कुब्जाग्र की भांति अथवा पर्वत के ऊपर हस्तिकुम्भ की आकृति - सदृश्य कुब्ज, ❖ 450❖
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy