________________
पुण्डरीक के उदाहरण पर अन्य मतों का युक्तिसंगत उल्लेख करके स्वमत की स्थापना की गई है। 13 क्रियाओं का प्रत्याख्यान, आहार आदि का वर्णन विस्तार से किया गया है। पाप-पुण्य का विवेक, आर्द्रककुमार के साथ गोशालक,शाक्यभिक्षु, तापसों से हुए वाद-विवाद, आर्द्रककुमार के जीवन से सम्बन्धित विरक्तता और सम्यक्त्व में दृढ़ता का रोचक वर्णन है। अन्तिम नालन्दीय नामक अध्ययन में नालन्दा में हुए गौतम गणधर और पार्श्वनाथ के शिष्य उदकपेढालपुत्र का वार्तालाप और अन्त में पेढालपुत्र के द्वारा चातुर्याम चर्या को छोड़कर पंचमहाव्रत स्वीकार करने का सुन्दर वृत्तान्त है। प्राचीन मतों, वादों व दृष्टियों के अध्ययन की दृष्टि से यह श्रुतांग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस अंग में 23 अध्ययन और 33 उद्देशक हैं, दूसरे श्रुतस्कन्ध में 7 अध्ययन और 7 उद्देशक हैंअध्ययन- 123456789 10 11 12 13 14 15 16 उद्देशक-434221111 1 1 1 1 1 1
इस सूत्र में वाचनाएं संख्यात हैं। अनुयोगद्वार, प्रतिपत्ति, वेष्टक, श्लोक, नियुक्तियां और अक्षर ये सब संख्यात हैं। 36000 पद हैं। इनकी व्याख्या पहले लिखी जा चुकी है। पृथ्वी, अप, तेज, वायु और त्रस इनमे असंख्यात जीव हैं तथा वनस्पतिकाय में संख्यात-असंख्यात और अनन्त जीव पाए जाते हैं। इन सबकी व्याख्या भली प्रकार से की गई है।
इसके अध्ययन करने से स्वमत, परमत तथा उभय मत का सुगमता से ज्ञान हो जाता है। आत्म-साधना और सम्यक्त्व को दृढ़ करने के लिए यह अंग विशेष उपयोगी है।
इस सूत्र पर भद्रबाहुकृत नियुक्ति, जिनदासमहत्तरकृत चूर्णि और शीलांकाचार्य की बृहद्वृत्ति भी उपलब्ध हैं। 363 मतों का खण्डन-मण्डन की ओर विशेष रुचि रखने वाले जिज्ञासुओं को नन्दीसूत्र की मलयगिरिकृत वृत्ति पठनीय है ।। सूत्र 47 ।।
३. श्रीस्थानांगसूत्र ____ मूलम्-से किं तं ठाणे ? ठाणे णं जीवा ठाविजंति, अजीवा ठाविज्जति, जीवाजीवा ठाविजंति, ससमए ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमए-परसमए ठाविज्जइ, लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, लोआलोए ठाविज्जइ। __ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुण्डाइं, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ, आघविजंति। ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा
- *449 *