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________________ ५. सातावादी-जिनकी मान्यता है कि सुख का बीज सुख है और दुःख का बीज दुःख है। जैसे शुक्ल तन्तुओं से बुना हुआ वस्त्र भी सफेद ही होगा और काले तन्तुओं से बना हुआ वस्त्र भी काला ही होगा। वैषयिक सुख के उपभोग से जीव भविष्य में सुखी हो सकता है। तप-संयम, ब्रह्मचर्य, नियम आदि शरीर और मन को कष्टप्रद होने से, ये सब दु:ख के मूल कारण हैं। शरीर को तथा मन को साता पहुंचाने से ही अनागत काल में जीव सुखी हो सकता है, अन्यथा नहीं। ऐसी मान्यता रखने वाले विचारकों का समावेश उक्त भेद में हो जाता है। ____६. समुच्छेदवादी-क्षणिकवादी आत्मा आदि सभी पदार्थों को क्षणिक मानते हैं, निरन्वय नाश की मान्यता को मानने वाले समुच्छेदवादी कहलाते हैं। ____७. नित्यवादी-जो एकान्त नित्यवाद के पक्षपाती हैं, उनके विचार में प्रत्येक वस्तु एक रस में अवस्थित है। उनका कहना है-वस्तु में उत्पाद-व्यय नहीं होता। वे वस्तु को परिणामी नहीं, कूटस्थ नित्य मानते हैं, दूसरे शब्दों में उन्हें विवर्तवादी भी कहते हैं। जैसे असत् की उत्पत्ति नहीं होती और न उसका विनाश ही होता है। इसी प्रकार सत् का भी उत्पाद और विनाश नहीं होता। कोई भी परमाणु सदा-काल से जैसा चला आ रहा है, वह भविष्य में भी ज्यों का त्यों बना रहेगा, उसमें परिवर्तन के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। ऐसी मान्यता रखने वाले वादी उक्त भेद में निहित हो जाते हैं। ८. न संति परलोकवादी-आत्मा ही नहीं तो परलोक किसके लिए ? आत्मा किसी भी प्रमाण से प्रमाणित नहीं होता। आत्मा के अभाव होने से पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म, शुभअशुभ कोई कर्म नहीं है, अतः परलोक नामक कोई वस्तु ही नहीं है। अथवा शान्ति मोक्ष को कहते हैं, जो आत्मा को तो मानता है, किन्तु उनका कहना है कि आत्मा अल्पज्ञ है, वह कभी भी सर्वज्ञ नहीं बन सकता है। संसारी आत्मा कभी भी मुक्त नहीं हो सकता अथवा इस लोक में ही शान्ति-साता या सुख है, परलोक में इन सब का सर्वथा अभाव है। परलोक का, पुनर्जन्म का तथा मोक्ष का निषेध करने वाले जो भी विचारक हैं, उन सबका समावेश उपर्युक्त वादियों में हो जाता है। ३. अज्ञानवादी-अज्ञानी बने रहने से पाप करता हुआ भी निष्पाप बना रहता है। जिनका मन्तव्य है कि अज्ञान दशा में किए गए सब गुनाह-अपराध क्षम्य होते हैं। तथा जैसे शासक अबोध बालक के द्वारा किए हुए सब अपराध क्षमा कर देता है, उसे दण्ड नहीं देता, वैसे ही अज्ञान दशा में रहने से खुदा या ईश्वर सभी गुनाहों को क्षमा कर देता है। ज्ञान दशा में किए गए अपराधों का फल भोगना अवश्यंभावी है। अत: अज्ञानी बने रहने में ही लाभ है। ऐसी मान्यता के पक्षपाती अज्ञानवादी कहलाते हैं। . ४. विनयवादी-इनकी मान्यता है कि सभी पशु-पक्षी, नाग-वृक्ष, मूर्ति, गुणहीन, शूद्र-चाण्डाल आदि सभी वन्दनीय हैं। अपने आपको उनसे भी नीच समझने वाले विचारक विनयबादी कहाते हैं। इनकी मान्यता है कि जीव और अजीव सभी वन्दनीय एवं प्रार्थनीय *445*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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