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________________ और न ताम्बा स्वर्ण ही बनता है। इसी तरह सभी द्रव्य अपने-अपने स्वरूप में ही अवस्थित हैं, न दूसरे के स्वरूप को अपनाते हैं और न अपना छोड़ते हैं, इसी में द्रव्य का द्रव्यत्व है। ___इस सूत्र में स्वदर्शन, अन्य दर्शन, तथा उभयदर्शनों का विवेचन किया गया है। अन्य दर्शनों का अन्तर्भाव यदि संक्षेप में किया जाए तो क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी, इन चार में हो सकता है, संक्षेप में उनका विवरण इस प्रकार है १. क्रियावादी-जो प्रायः बाह्य क्रियाकाण्ड के पक्षपाती, नव तत्त्वों को कथंचित् गलत समझने वाले और धर्म के आन्तरिक स्वरूप से बेभान हैं, ऐसे विचारकों को क्रियावादी कहते हैं। इनकी गणना प्रायः आस्तिकों में होती है। २. अक्रियावादी-जो नव तत्त्व या चारित्ररूप क्रिया के निषेधक हैं, वे प्रायः नास्तिक कहलाते हैं। स्थानांगसूत्र के आठवें स्थान में आठ प्रकार के अक्रियावादियों का स्पष्टोल्लेख मिलता है, जैसे कि १. एकवादी-कुछ एक विचारकों का मन्तव्य है कि सिवाय जड़ पदार्थ के विश्व में अन्य कुछ नहीं, जड़-ही-जड़ है। आत्मा, परमात्मा या धर्म नामक कोई वस्तु नहीं है। शब्दाद्वैतवादी सब कुछ शब्द ही को मानते हैं। ब्रह्माद्वैतवादी एक ब्रह्म के अतिरिक्त अन्य सब द्रव्यों का निषेध करते हैं-एकमेवाद्वितीयं-ब्रह्म जैसे एक ही चन्द्रमा अनेक जलाशयों और दर्पण आदि स्वच्छ पदार्थों में प्रतिबिम्बित होता है, वैसे ही सब शरीरों में एक ही आत्मा है, जैसे कहा भी है "एक एव हि भूतात्मा, भूते-भूते व्यवस्थितः । एकधा बहुधाश्चैव, दृश्यते जलचन्द्रवत् ॥". उपरोक्त सभी वादियों का समावेश एकवादी में हो जाता है। २. अनेकवादी-जितने अवयव हैं, उतने ही अवयवी हैं, जितने धर्म हैं, उतने ही धर्मी हैं, जितने गुण हैं, उतने ही गुणी हैं। ऐसी मान्यता रखने वाले को अनेकवादी कहते हैं। वस्तुगत अनन्त पर्याय होने से वस्तु को भी अनन्त मानने वाले अनेकवादी कहलाते हैं। ३. मितवादी-जो लोक को सप्तद्वीप समुद्र तक ही मानते हैं, आगे नहीं। जो आत्मा को अंगुष्ठ-प्रमाण या श्यामाक तण्डुल प्रमाण मानते हैं, शरीर या लोकप्रमाण नहीं। जो दृश्यमान जीवों को ही आत्मा मानते हैं, अनन्त-अनन्त नहीं। ऐसे विचारक इसी कोटि के वादी माने जाते हैं। ४. निर्मितवादी-यह विश्व किसी-न-किसी के द्वारा निर्मित है। ईश्वरवादी सृष्टि का कर्ता, हर्ता एवं धर्ता सब कुछ ईश्वर को मानते हैं। कोई ब्रह्मा को, शैव शिव को, वैष्णव विष्णु को कर्त्ता व निर्माता मानते हैं। दैवी भागवत में शक्ति-देवी को ही निर्मात्री माना है, इत्यादि वादियों का समावेश उक्त भेद में हो जाता है। *444*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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