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प्रकारेण च ते वेदितव्याः, तद्यथा-सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायमिति इदं च सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामिनं प्रत्याह तत्रायमर्थः।"
१. श्रुतं मया हे आयुष्मन् ! तेन भगवता वर्द्धमानस्वामिना-एवमाख्यातमिति। __२. अथवा श्रुतं मया आयुष्यमदन्ते, आयुष्मतो-भगवतो वर्द्धमानस्वामिनोऽन्ते समीपे, णमिति वाक्यालंकारे तथा च भगवता एवमाख्यातम्।
३. अथवा श्रुतं मया आयुष्यमता। ४. श्रुतं मया भगवत्पादारविन्दयुगलमामृशता। ५. अथवा श्रुतं मया गुरुकुलवासमावसता।
६. अथवा श्रुतं मया हे आयुष्यमन् ! तेणं ति प्रथमार्थे तृतीया, तद् भगवता एवमाख्यातमिति।
७. अथवा श्रुतं मयाऽऽयुष्यमन् ! ते णं ति तदा भगवता एवमाख्यातम्। । ८. अथवा श्रुतं मया हे आयुष्यमन् ! 'तेणं' षड्जीवनिकायविषये। ९. तत्र वा समवसरणे स्थितेन भगवता एवमाख्यातम्।
१०. अथवा श्रुतं मम हे आयुष्यमन् ! वर्तते यतस्तेन भगवता एवमाख्यातम्, एवमादयस्तं तमर्थमधिकृत्य गमा भवन्ति।"
अभिधानवशतः पुनरेवंगमाः सुयं मे आउसंतेणं, आउस सुयं मे, मे सुयं आउसं, इत्येवमर्थभेदेन, तथा २ पदानां संयोजनतोऽभिधानगमा भवन्ति, एवमादयः किल गमा अनन्ता भवन्ति।".
स्व-पर भेद से अनन्त पर्याय हैं। इस में परिमित त्रसों का वर्णन है, अनन्त स्थावरों का उक्त श्रुत में सविस्तर वर्णन किया गया है।
सासयकडनिबद्धनिकाइया-शाश्वत धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य नित्य हैं। घट-पट आदि पदार्थ प्रयोगज हैं तथा संध्याभ्रराग विश्रसा से हैं, ये भी उक्त श्रुत में वर्णित हैं। नियुक्ति, हेतु, उदाहरण, लक्षण आदि अनेक पद्धतियों के द्वारा पदार्थों का निर्णय किया गया है।
आघविन्जन्ति-इस सूत्र में जीवादि पदार्थों का स्वरूप सामान्य तथा विशेष रूप से कथन किया गया है।
पण्णविन्जन्ति-नाम आदि के भेद से कहे गए हैं। परूविज्जन्ति-विस्तार पूर्वक प्रतिपादन किए गए हैं। दंसिज्जंति-उपमा-उपमेय के द्वारा प्रदर्शित किए गए हैं। निदंसिजंति-हेतु तथा दृष्टान्तों से वस्तुतत्त्व का विवेचन किया गया है।
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