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________________ का भी। नन्दी अनन्त सुखों का भण्डार है और मोक्ष सुख का कारण एवं साधन है, विजय का अमोघ साधन है और सभी प्रकार के भयों से सर्वथा मुक्त करने वाला है। आगम तो सचमुच दर्पण है, जिसके अध्ययन करने से अपने में छुपे अवगुण स्पष्ट झलकने लग जाते हैं । आत्मा को परमात्मपद की ओर प्रेरणा करने वाले परमगुरु आगम ही हैं। आगम-ज्ञान से ही मन और इन्द्रियां समाहित रहती हैं। __ आगम-ज्ञान आत्मा में अद्भुत शक्ति-स्फूर्ति-अप्रमत्तता को जगाता है। नन्दी सूत्र आत्मगुणों की सूची है । इसके अध्ययन करने से अन्त:करण में वीतरागता जगती है। क्लेश, मनोमालिन्य, हिंसा, विरोध इन सबका शमन सहज में ही हो जाता है। इसी दृष्टिकोण को लक्ष्य में रखकर पूर्वाचार्यों ने जहां तक उनका वश चला, वहां तक आगमों को विच्छिन्न नहीं होने दिया । यदि शास्त्र में विषय गहन हो, अध्ययन और अध्यापन करने वालों का समाधान तथा स्पष्टीकरण न हो सके, तो वह आगम कालान्तर में स्वतः विच्छिन्न हो जाता है । अतः गहन विषय को और प्राचीन शब्दावलियों को सुगम एवं सुबोध बनाने के लिए नियुक्ति, वृत्ति, चूर्णि, अवचूरिका, भाष्य, हिन्दी विवेचन आदि लिखे हैं, ताकि जिज्ञासुओं के मन में आगमों के प्रति रुचि बनी रहे । पढ़ने-पढ़ाने की पद्धति चलती रहे, अपना उपयोग ज्ञान में लगा रहे । तीर्थ भी आगमों के आधार पर ही टिका हुआ है। श्रुतज्ञान से स्व और पर दोनों को लाभ होता है'। . भगवान् महावीर ने कहा है कि आगमाभ्यास से ज्ञान होता है, मन एकाग्र होता है, आत्मा श्रुतज्ञान से ही धर्म में स्थिर रह सकता है, स्वयं धर्म में स्थिर रहता हुआ दूसरों को भी धर्म में स्थिर कर सकता है। अतः श्रुतज्ञान चित्तसमाधि का मुख्य कारण है। यदि आज वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति, टब्बा आदि न होते, तो विषय जटिल होने से संभव है, उपलब्ध आगम भी बहुत कुछ व्यवच्छिन्न हो जाते । आज का जैन समाज उन पूर्वाचार्यों का कृतज्ञ है, जिन्होंने आगमों को व्यवच्छिन्न नहीं होने दिया, हम उन्हें कोटिशः प्रणाम करते हैं। नन्दीसूत्र और ज्ञान जिस सूत्र का जैसा नाम है, उसमें विषय वर्णन भी वैसा ही पाया जाता है, किन्तु हम जब 'नन्दी' नाम पढ़ते हैं या सुनते हैं, तब बुद्धि शीघ्रता से यह निर्णय नहीं कर पाती कि इसमें किस विषय का वर्णन है ? नन्दी का और ज्ञान का परस्पर क्या सम्बन्ध है ? ज्ञान का 1. दशवैकालिक सूत्र अ. 9वां उ. चौथा। - *35*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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