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________________ महातेजपुंज है । मुक्ति सौध पर चढ़ने के लिए श्रुतज्ञान सोपान है, संसार सागर से पार होने के लिए सेतु है, आत्मा को स्वच्छ एवं निर्मल करने के लिए विशुद्ध जल है । जिनवाणी दिव्य, अनुपम एवं अद्भुत औषधि है, जो भवरोग या कर्मरोग को सदा के लिए नष्ट कर देती है, यह वैषयिक सुख का विरेचन करने वाली दवा है। चिरकाल व्याप्त मोहविष को उतारने वाला यह जिन-वचनरूप पीयूष है जोकि जन्म-जरा-मरण, विविध आधि-व्याधि को हरण करने वाला अचूक नुस्खा है । सर्व दु:खों को ऐकान्तिक एवं आत्यन्तिक क्षय करने वाला यदि विश्व में कोई ज्ञान है, तो वह आगमज्ञान ही है । नन्दीसूत्र में उपर्युक्त सभी उपमाएं तथा दिव्य ओषधियां घटित हो जाती हैं। इसकी आराधना करने से तीन गुप्तियां गुप्त हो जाती हैं. तथा तीन शल्य जड़मूल से उखड़ जाते हैं,वे तीन शल्य निम्नलिखित हैं १. मायाशल्य-व्रतों में जितने अतिचार लगते हैं, जिन दोषों से मूलगुण तथा उत्तरगुण दूषित होते हैं, उनमें माया की मुख्यता होती है। किसी की आंख में धूल झोंक कर व्रतों को दूषित करना, चारित्र में मायाचारी करना, लोगों में उच्च क्रिया दिखाना और गुप्त रूप में दोषों का सेवन माया से किया जाता है । जब शक्ति और भावना के अनुरूप क्रिया की जाती है तब माया का सेवन नहीं होता । माया का उन्मूलन आलोचना करने से हो जाता है। ... २. निदानशल्य-रूप, बल, सत्ता, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए, देवत्व तथा वैषयिक तृप्ति के लिए उपार्जन किए हुए संयम-तप के बदले उपर्युक्त वस्तुओं की इच्छा रखना, नश्वर सुख के लिए तप-संयम का आचरण, इसका अर्थ यह हुआ, उसे मोक्ष सुख की आवश्यकता नहीं। तप-संयम के बदले इहभविक तथा पारभाविक परमार्थ बेच देना। भौतिक सुख की कामना करना ही निदान है, यह भी आत्मा को जन्म-जन्मान्तर में चुभे हुए कांटे के समान बेचैन बनाए रखता है। ३. मिथ्यादर्शनशल्य-यह भी आध्यात्मिक रोग है, इससे आत्मा सदा रुग्ण और अशान्त रहता है। इससे वैराग्य, संयम, तप, सदाचार, स्वाख्यात धर्म, ये सब व्यर्थ एवं ढोंग मालूम देते हैं। इससे बुद्धि में नास्तिकता, हृदय में कलुष्यता, वैषयिक सुख में आसक्ति, प्रभु से विमुखता, धर्म और मोक्ष से पराङ्मुखता होती है । मिथ्यादृष्टि का लक्ष्यबिन्दु अर्थ और काम ही होता है, वह कभी उनकी प्राप्ति और वृद्धि के लिए पुण्य की साधना भी कर लेता है । ये सब मिथ्यादर्शन के दुष्परिणाम हैं। तीनों शल्य संसार की वृद्धि करने वाले हैं, भव-भ्रमण कराने वाले हैं, पापों में लगाने वाले हैं, दुर्गति में भटकाने वाले हैं। ____ आलोचना करने से और नन्दीसूत्र की आराधना करने से उपर्युक्त सभी शल्यों का उद्धरण हो जाता है । जैसे चुभे हुए कांटे के निकालने से शान्ति हो जाती है, वैसे ही तीनों शल्यों को निकालने से आत्मा सम्यग्दर्शन और व्रतों का आराधक बन जाता है तथा श्रुतज्ञान
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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