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छाया-अथ किन्तत्कालिकम् ? कालिकमनेकविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. उत्तराध्ययनानि, २. दशाः, ३. कल्पः, ४. व्यवहारः, ५. निशीथम्, ६. महानिशीथम्, ७. ऋषिभाषितानि, ८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिः, ९. द्वीपसागरप्रज्ञप्तिः, १०. चन्द्रप्रज्ञप्तिः, ११. क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्तिः, १२. महल्लिका (महा) विमानप्रविभक्तिः, १३. अंगचूलिका, १४. वर्गचूलिका, १५, विवाहचूलिका, १६. अरुणोपपातः, १७. वरुणोपपातः, १८. गरुडोपपातः, १९. धरणोपपातः, २०. वैश्रमणोपपातः, २१. . वेलन्धरोपपातः, २२. देवेन्द्रोपपातः, २३. उत्थानश्रुतम्, २४. समुत्थानश्रुतम्, २५. नागपरिज्ञापनिकाः, २६. निरयावलिकाः, २७. कल्पिकाः, २८. कल्पावतंसिकाः, २९. पुष्पिताः, ३०. पुष्पचूलिका (चूला), ३१. वृष्णिदशाः, एवमादिकानि चतुरशीति प्रकीर्णसहस्त्राणि भगवतोऽर्हत ऋषभस्वामिन आदितीर्थंकरस्य, तथा संख्येयानि प्रकीर्णकसहस्त्राणि मध्यमकानां जिनवराणाम्, चतुर्दशप्रकीर्णकसहस्राणि भगवतो वर्द्धमान-स्वामिनः।
अथवा यस्य यावन्तः शिष्या औत्पत्तिक्या, वैनयिक्या, कर्मजया, पारिणामिक्या चतुर्विधया बुद्धयोपपेताः, तस्य तावन्ति प्रकीर्णकसहस्राणि, प्रत्येकबुद्धा अपि तावन्तश्चैव, तदेतत्कालिकम्। तदेतदावश्यक-व्यतिरिक्तम्, तदेतदनंगप्रविष्टम् ॥ सूत्र ४४ ॥
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-वह कालिक-श्रुत कितने प्रकार का है ? आचार्य उत्तर में बोले-कालिकश्रुत अनेक प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे-१. उत्तराध्ययन, २. दशाश्रुतस्कन्ध, ३. कल्प-बृहत्कल्प, ४. व्यवहार, ५. निशीथ, ६. महानिशीथ, ७. ऋषिभाषित, ८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ९. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, १०. चन्द्रप्रज्ञप्ति, ११. क्षुद्रिकाविमान-प्रविभक्ति, १२. महल्लिकाविमानप्रविभक्ति, १३. अंगचूलिका, १४. वर्गचूलिका, १५, विवाहचूलिका, १६. अरुणोपपात, १७. वरुणोपपात, १८. गरुडोपपात, १९. धरणोपपात, २०. वैश्रमणोपपात, २१. वेलन्धरोपपात, २२.,देवेन्द्रोपपात, २३. उत्थानश्रुतम्, २४. समुत्थानश्रुतम्, २५. नागपरिज्ञापनिका, २६. निरयावलिका, २७. कल्पिका, २८. कल्पावतंसिका, २९. पुष्पिता, ३०. पुष्पचूलिका (चूला), ३१. वृष्णिदशा, (अन्धकवृष्णिदशा) इत्यादि। ८४ हजार प्रकीर्णक भगवान् अर्हत् श्री ऋषभदेव स्वामी आदि तीर्थंकर के हैं। तथा संख्यात सहस्र प्रकीर्णक मध्यम तीर्थंकरों-जिनवरों के हैं। चौदह हजार प्रकीर्णक भगवान् श्री वर्द्धमान महावीर स्वामी के हैं।
अथवा जिसके जितने शिष्य औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी चार प्रकार की बुद्धि से युक्त हैं, उनके उतने ही हजार प्रकीर्णक होते हैं। प्रत्येकबुद्ध भी उतने ही हैं। यह कालिकश्रुत है। इस प्रकार यह आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत का वर्णन हुआ, और इसी प्रकार यह अनंग-प्रविष्टश्रुत का भी स्वरूप सम्पूर्ण हुआ।
टीका-इस सूत्र में कालिक सूत्रों के नामोल्लेख किए गए हैं, जैसे- .
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