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उत्तरांध्ययन-इसमें 36 अध्ययन हैं। महावीर स्वामी ने अपने जीवन के उत्तरकाल में निर्वाण से पूर्व जो उपदेश दिया था, यह उसी का संकलित सूत्र है। इन 36 अध्ययनों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है, 1. सैद्धान्तिक, 2. नैतिक व सुभाषितात्मक, और 3. कथात्मक, इनका विस्तृत वर्णन उक्त सूत्र में है। प्रत्येक अध्ययन अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
निशीथ-रात्रि मे जब प्रकाश की परमावश्यकता अनुभव हो रही हो, तब वह प्रकाश कितना सुखप्रद होता है, इसी प्रकार अतिचार रूप अन्धकार को दूर करने के लिए यह सूत्र प्रायश्चित्त रूपी प्रकाश का काम देता है।
अंगचूलिका-आचारांग आदि अंगों की चूलिका। चूलिका का अर्थ होता है-उक्त, अनुक्त अर्थों का संग्रह। यह सूत्र अंगों से सम्बन्धित है। जैसे कि
. "अंगस्य आचारादेशचूलिका अंगचूलिका, चूलिका नाम उक्तानुक्तार्थसंग्रहात्मिका ग्रन्थपद्धतिः।" आचारांग सूत्र की पांच चूलिकाएं हैं। एक चूलिका दृष्टिवादान्तर्गत भी है।
वर्गचूलिका-जैसे अन्तकृत् सूत्र के आठ वर्ग हैं, उनकी चूलिका। अनुत्तरौपपातिकदशा-इसमें तीन वर्ग हैं, उनकी चूलिका। व्याख्या-चूलिका-भगवती सूत्र की चूलिका। -: अरुणोपपात-जब उक्त सूत्र का पाठ कोई मुनि उपयोग पूर्वक करता है, तब अरुणदेव जहां पर वह मुनि अध्ययन कर रहा है, वहां पर आकर उस अध्ययन को सुनता है, अध्ययन समाप्ति पर वह देव कहता है-हे मुने ! आपने भली प्रकार से स्वाध्याय किया है, आप मेरे से कुछ स्वेच्छया वर याचना करो। तब मुनि निःस्पृह होने से उत्तर में कहता है-हे देव ! मुझे किसी भी वर की इच्छा नहीं है। इससे देव प्रसन्न होकर नि:स्पृह, संतोषी मुनि को सविधि वन्दन करके चला जाता है। यही भाव चूर्णिकार के शब्दों में झलकते हैं, जैसे कि
"जाहे तमझयणं उवउत्ते समाणे अणगारे परियट्टई, ताहे से अरुणदेवे समयनिवद्धत्तणओ चलियासणसंभमुब्भंतलोयणे, पउत्तावही, वियाणियढें, पहढे चलचवलकुण्डलधरे, दिव्वाए जुईए दिव्वाए विभूईए, दिव्वाए गईए, जेणामेव से भयवं समणे निग्गन्थे अज्झयणं परियट्टेमाणे अच्छइ, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तिभरोणयवयणे विमुक्कवरकुसुमगन्धवासे ओवयइ, ओयइत्ता ताहे से समणस्स पुरओ ठिच्चा अन्तट्ठिए कयंजली उवउत्ते संवेगविसुज्झमाणज्झवसाणेणं अज्झयणं सुयमाणे चिट्ठइ, सम्मत्ते अज्झयणे भणइ भयवं ! सुसज्झाइयं २, वरं वरेहि त्ति।
ताहे से इहलोयनिप्पिवासे समतिण-मुत्ताहल, लेठुकंचणे, सिद्धिवर-रमणिपडिबद्धनिब्भराणुरागे, समणे पडिभणइ-न मे णं भो ! वरेणं अट्ठो त्ति, ततो से अरुणे देवे
अहिगयरजायसंवेगे पयाहिणं करेत्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता पडिगच्छइ।" इसी प्रकार
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