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वीतराग श्रुत- इसमें वीतराग का स्वरूप बतलाया है, जिसे पढ़ने से जिज्ञासु एवं अध्येता भी वीतरागता का अनुभव करने लग जाता है।
संलेखना श्रुत- अशन आदि का परित्याग करना द्रव्य संलेखना है और कषायों का परित्याग करना भाव संलेखना है, इसका उल्लेख इसमें है।
विहारकल्प - इसमें स्थविरकल्प का सविस्तर वर्णन है। चरणविधि-इसमें चारित्र के भेद - प्रभेदों का उल्लेख किया गया है।
आतुरप्रत्याख्यान - इसमें जिनकल्प, स्थविरकल्प और एकलविहारकल्प में प्रत्याख्यान का विधान वर्णित है। इत्यादि उत्कालिक सूत्रों में किन्हीं सूत्रों का यथानाम तथा वर्णन है। किन्हीं का पदार्थ एवं मूलार्थ में भाव बतला दिया और किन्हीं की व्याख्या ऊपर लिखी जा चुकी है।
. इनमें कतिपय सूत्र उपलब्ध हैं, कुछ अनुपलब्ध, किन्तु जो श्रुत द्वादशांग गणिपिटक के अनुसार है, वह सर्वथा प्रामाणिक है, तथा जो स्वमति कल्पना से प्रणीत है, और जो आगमों से विपरीत है, वह प्रमाण की कोटि में नहीं आ सकता।
मूलम् - से किं तं कालिअं ? कालिअं - अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा१. उत्तरज्झयणाई, २. दसाओ, ३. कप्पो, ४. ववहारो, ५. निसीहं, ६. महानिसीहं, ७. इसिभासिआई, ८. जंबूदीवपन्नत्ती, ९. दीवसागरपन्नत्ती, १०. चंदपन्नत्ती, ११. खुड्डिआविमाणपविभत्ती, १२. महल्लिआविमाणपविभत्ती, १३. अंगचूलिआ, १४. वग्गचूलिआ, १५. विवाहचूलिआ, १६. अरुणोववाए, १७. वरुणोववाए, १८. गरुलोववार, १९. धरणोववाए, २०. वेसमणोववाए, २१. वेलंधरोववाए, २२. देविंदोववाए, २३. उट्ठाणसुए, २४. समुट्ठाणसुए, २५. नागपरिआवणिआओ, २६. निरयावलियाओ, २७. कप्पिआओ, २८. कप्पवडिंसिआओ, २९. पुप्फआओ, ३०. पुप्फचूलिआओ, ३१. वण्हीदसाओ, एवमाइयाई, चउरासीइं पइन्नगसहस्साइं भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स, तहा संखिज्जाई पइन्नगसहस्साइं मज्झिमगाणं जिणवराणं, चोइसपइन्नगसहस्साणि भगवओ वद्धमाणसामिस्स ।
अहवा जस्स जत्तिआ सीसा उप्पत्तिआए, वेणइआए, कम्मियाए, पारिणामिआए चउव्विहाए बुद्धीए उववेआ, तस्स तत्तिआई पइण्णगसहस्साइं । पत्तेअबुद्धावि तत्तिआ चेव, से त्तं कालिअं से त्तं आवस्सयवइरित्तं । से त्तं अणंगपविट्ठ | सूत्र ४४ ॥
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