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वर्जकर अध्ययन किया जाता है, वे उत्कालिक होते हैं अर्थात् वे अस्वाध्याय के समय को छोड़कर शेष रात्रि और दिन में पढ़े जाते हैं। इसी प्रकार वृत्तिकार व चूर्णिकार भी लिखते हैं, जैसे कि
"कालिकमुत्कालिकं च तत्र यद्दिवसनिशाप्रथमपश्चिमपौरुषीद्वय एव पठ्यते तत्कालिकम् कालेन निवृत्तं कालिकमिति व्युत्पत्तेः, यत्पुनः कालवेलावर्जं पठ्यते तदुत्कालिकम्, आह च चूर्णिकृत- तत्थ कालियं जं दिणराई (ए) (ण) पढमचरमपोरिसीसु पढिज्जइ । जं पुण कालवेलावज्जं पढिज्जइ तं उक्कालियं ति ।
उत्कालिक -कालिक श्रुत का परिचय
दशवैकालिक और कल्पाकल्प ये दो सूत्र, स्थविर आदि कल्पों का प्रतिपादन करने वाले हैं।
महाप्रज्ञापना- सूत्र में प्रज्ञापनासूत्र की अपेक्षा से जीवादि पदार्थों का सविशेष वर्णन किया गया है।
प्रमादाप्रमाद - इसमें मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा इत्यादि प्रमाद का वर्णन है। अपने कर्त्तव्य एवं अनुष्ठान में सतर्क रहना अप्रमाद है । प्रमाद संसार का राजमार्ग है और अप्रमाद मोक्ष का, इनका वर्णन उक्त सूत्र में वर्णित है।
सूर्यप्रज्ञप्ति - इस सूत्र में सूर्य का सविस्तर स्वरूप वर्णित हैं।
पौरुषीमण्डल - इसमें मुहूर्त्त, प्रहर आदि कालमान का वर्णन है, जैसे आजकल जंतर-मंतर से, घड़ी से, समय का ज्ञान होता है। वैसे ही इस सूत्र में यही विज्ञान उल्लिखित था, जो कि आजकल अनुपलब्ध है।
मण्डलप्रवेश-जब सूर्य एक मण्डल से दूसरे मण्डल में प्रवेश करता है, इसका विवरण में है।
सूत्र
विद्या-चरण-विनिश्चय - इस सूत्र में विद्या और चारित्र का पूर्णतया विवरण था । गणिविद्या- जो गच्छ व गण का स्वामी है, उसे गणी कहते हैं। गणी के क्या-क्या कर्त्तव्य हैं, कौन-कौन सी विद्याएं उसके अधिक उपयोगी हैं, उनकी नामावली और उनकी आराधना का वर्णन इसका विषय है।
ध्यानविभक्ति-इसमें आर्त्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल ध्यान का पूर्णतया विवरण है।
मरणविभक्ति-जैसे जीवन एक कला है, जिसे जीने की कला आ गई, उसे मरण की कला भी सीखनी चाहिए। अकाममरण, सकाममरण, बालमरण तथा पण्डितमरण आदि विषय इस सूत्र में वर्णन किए गए हैं।
आत्मविशोधि- इसमें आत्म विशुद्धि के विषय को स्पष्ट किया है। .
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