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महापण्णवणा, १०. पमायप्पमायं, ११. नंदी, १२. अणुओगदाराइं, १३. देविंदत्थओ, १४. तंदुलवेआलिअं, १५. चंदाविज्झयं, १६. सूरपण्णत्ती, १७. पोरिसिमंडलं, १८. मंडलपवेसो, १९. विज्जाचरविणिच्छओ, २०. गणिविज्जा', २१. झाणविभत्ती, २२. मरणविभत्ती, २३. आयविसोही, २४. वीयरागसुअं, २५. संलेहणासुअं, २६. विहारकप्पो, २७. चरणविही, २८. आउरपच्चक्खाणं, २९. महापच्चक्खाणं, एवमाइ, से त्तं उक्कालि।
छाया-अथ किं तदावश्यक-व्यतिरिक्तम् ? आवश्यक-व्यतिरिक्तं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. कालिकञ्च, २. उत्कालिकञ्च।
अथ किं तदुत्कालिकम् ? उत्कालिकमंनेकविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. दशवैकालिकम्, २. कल्पिकाकल्पिकं (कल्पाकल्पम् ), ३. चुल्ल (क्षुल्ल) कल्पश्रुतम्, ४. महाकल्पश्रुतम्, ५. औपपातिकम्, ६. राजप्रश्नीकम्, ७. जीवाभिगमः, ८. प्रज्ञापना, ९. महाप्रज्ञापना, १०. प्रमादाप्रमादम्, ११. नन्दी, १२. अनुयोगद्वाराणि, १३. देवेन्द्रस्तवः, १४. तन्दुलवैचारिकम्, १५. चन्द्रकवेध्यम्, १६. सूर्यप्रज्ञप्तिः , १७. पौरुषीमण्डलम्, १८. मण्डलप्रवेशः, १९. विद्याचरणविनिश्चयः, २०. गणिविद्या, २१. ध्यानविभक्तिः , २२. मरणविभक्तिः , २३. आत्मविशोधिः, २४. वीतरागश्रुतम्, २५. संलेखनाश्रुतम्, २६. विहारकल्पः, २७. चरणविधिः, २८. आतुरप्रत्याख्यानम्, २९. महाप्रत्याख्यानम्, एवमादि, तदेतदुत्कालिकम्। __ भावार्थ+वह आवश्यकव्यतिरिक्त-श्रुत कितने प्रकार का है ? आवश्यक-भिन्न श्रुत दो प्रकार का है, जैसे १. कालिक-जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम और अन्तिम प्रहर में स्वाध्याय किया जाता है। २. उत्कालिक-जो कालिक से भिन्न काल में भी पढ़ा जाता है।
वह उत्कालिकश्रुत कितने प्रकार का है ? उत्कालिक-श्रुत अनेक प्रकार का है, जैसे-१. दशवैकालिक, २. कल्पाकल्प, ३. चुल्लकल्पश्रुत, ४. महाकल्प-श्रुत, ५. औपपातिक, ६. राजप्रश्नीक, ७. जीवाभिगम, ८. प्रज्ञापना, ९. महाप्रज्ञापना, १०. प्रमादाप्रमाद, ११. नन्दी, १२. अनुयोगद्वार, १३. देवेन्द्रस्तव, १४. तन्दुलवैचारिक, १५. चन्द्रविद्या, १६. सूर्यप्रज्ञप्ति, १७. पौरुषीमण्डल, १८. मण्डलप्रवेश, १९. विद्याचरणनिश्चय, २०. गणिविद्या, २१. ध्यान विभक्ति, २२. मरणविभक्ति? २३. आत्मविशुद्धि, २४. वीतरागश्रुत, २५. संलेखनाश्रुत, २६, विहारकल्प, २७. चरणविधि, २८. आतुरप्रत्याख्यान और २९. महाप्रत्याख्यान, इत्यादि यह उत्कालिक-श्रुत का वर्णन सम्पूर्ण हुआ।
टीका-इस सूत्र में कालिक और उत्कालिक सूत्रों के पवित्र नामोल्लेख किए गए हैं। जो दिन और रात्रि के पहले और पिछले पहर में पढ़े जाते हैं, वे कालिक, जिनका काल वेला
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