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सिद्धान्त सत्य का पुजारी है। जहां सूर्य जगमगाता है, वहां अन्धकार कभी भी नहीं ठहर सकता। वैसे ही सत्य के सम्मुख असत्य, ज्ञान के सम्मुख अज्ञान, सम्यक्त्व के सम्मुख मिथ्यात्व, शुद्ध सिद्धान्त के सम्मुख गलत मान्यताएं कभी भी नहीं ठहर सकतीं, यह अनादिनिधन नियम है। जैन दर्शन प्रमाणवाद से एवं अनेकान्तवाद से जो कुछ निर्णय देता है, उसे रद्द करने की किसी में शक्ति नहीं है। जैन परिभाषा में जिसे मिथ्यात्व कहते हैं, पातंजल योगदर्शन की परिभाषा में उसे अविद्या कहते हैं। गीता में भी कहा है “त्रैगुण्यविषया वेदाः, निस्वैगुण्यभवार्जुन!" इस सूक्ति से भी प्रकृतिजन्य गुणातीत बनने के लिए प्रेरणा मिलती है। वेदों में प्रायः जो प्रकृति के तीन गुण हैं, उनका वर्णन है और अध्यात्म विद्या बहुत ही कम, ऐसा इस श्लोकार्ध से ध्वनित होता है ।। सूत्र 42 ।।
७-८, ९-१० सादि-सान्त, अनादि-अनन्त श्रुत मूलम्-से किं तं साइअं-सपज्जवसिअं ? अणाइअं-अपज्जवसिअंच ?
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगंवुच्छित्तिनयट्ठयाए साइअंसपज्जवसिअं, अवुच्छित्तिनयट्ठयाए-अणाइअंअपज्जवसिआतंसमासओचउब्विहं पण्णत्तं, तं जहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ
१. दव्वओ णं सम्मसुअंएगं पुरिसं पडुच्च-साइअंसपज्जवसिअं, बहवे पुरिसे य पडुच्च-अणाइयं अपज्जवसि .
२. खेत्तओ णं पंच भरहाई, पंचेरवयाइं, पडुच्च-साइअंसपज्जवसिअं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसिओ
३. कालओ णं उस्सप्पिणिं ओसप्पिणिंच पडुच्च-साइअंसपज्जवसिअं, नो उस्सप्पिणिं नो ओसप्पिणं च पडुच्च-अणाइयं अपज्जवसिओ
४. भावओणंजे जया जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति, पण्णविजंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिजंति, तया (ते) भावे पडुच्चसाइअं सपज्जवसिओ खाओवसमिअं पुण भावं पडुच्च-अणाइअं अपज्जवसि।
अहवा भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपज्जवसिअं, अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपज्जवसियं च।
सव्वागासपएसग्गंसव्वागासपएसेहिं अणंतगुणिअंपज्जवक्खरं निष्फज्जइ, सव्वजीवाणंपि अ णं अक्खरस्स अणंतभागो निच्चुग्घाडिओ, जइ पुण
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