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________________ हैं। अर्थात् जिन की दृष्टि-विचार-सरणि मिथ्यात्व से अनुरंजित है, उन्हें मिथ्यादृष्टि कहते हैं। मिथ्यात्व दस प्रकार का होता है, उसमें से यदि किसी जीव में एक प्रकार का भी हो तो, वह मिथ्यादृष्टि है, जैसे १. अधम्मे धम्मसण्णा -अधर्म में धर्म समझना। संज्ञा शब्द 'सम्' पूर्वक 'ज्ञा' धातु से बना है, जिस का अर्थ होता है-विपरीत होते हुए भी जिसे सम्यक् समझा जाए। जैसे देव-देवी के नाम पर, ईश्वर के नाम पर, पितरों के नाम पर, हिंसा आदि पाप कृत्य को धर्म समझना, शिकार खेलने में धर्म समझना, मांस-अण्डा, मदिरा आदि के सेवन करने में धर्म मानना, अन्याय-अनीति में धर्म मानना मिथ्यात्व है। २. धम्मे अधम्मसण्णा-अहिंसा, संयम, तप तथा ज्ञान-दर्शनादि रत्नत्रय को अधर्म समझना। आत्मशुद्धि के मुख्य कारण को धर्म कहते हैं। धर्म में अधर्म संज्ञा रखना भी मिथ्यात्व है। ३. उम्मग्गे मग्गसण्णा-उन्मार्ग में सन्मार्ग संज्ञा, संसार मार्ग को मोक्ष मार्ग, दुःखपूर्ण मार्ग को सुख का मार्ग समझना मिथ्यात्व है। ४. मग्गे उम्मग्गसण्णा-मोक्ष मार्ग को संसार का मार्ग समझना, "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" इसे संसार का मार्ग समझना मिथ्यात्व है। .. ५. अजीवेसु जीवसण्णा-अजीवों में जीव संज्ञा, जड़ पदार्थ में भी जीव समझना अर्थात् जो कुछ भी दृश्यमान है, वे सब जीव ही जीव हैं, अजीव पदार्थ विश्व में है ही नहीं, इस प्रकार अजीवों में जीव समझना मिथ्यात्व है। ६. जीवेसु अजीवसण्णा-जीवों में अजीव की संज्ञा, जैसे चार्वाक दर्शनानुयायी शरीर से भिन्न आत्मा के अस्तित्व से सर्वथा इन्कार करते हैं तथा कुछ एक विचारक जानवरों में जीवात्मा नहीं मानते, उनमें केवल प्राण ही मानते हैं, इसी कारण उन्हें मारने व खाने में पाप नहीं मानते। इस प्रकार की मान्यता को भी मिथ्यात्व कहा जाता हैं। .. ७. असाहूसु साहुसण्णा-असाधुओं में साधु संज्ञा, जो जर, जोरू जमीन के त्यागी नहीं हैं, ऐसे वेषधारी को भी साधु समझना या अपनी संप्रदाय में असाधुओं को भी साधु समझना मिथ्यात्व है। __८. सास्सु असाहुसण्णा-साधुओं में असाधु संज्ञा, श्रेष्ठ संयत, पांच महाव्रत तथा समिति, गुप्ति के पालक मुनियों को भी असाधु समझना , उन का मजाक उड़ाना उन्हें ढोंगी-पाखण्डी समझना मिथ्यात्व है। ९. अमुत्तेसु मुत्तसण्णा-अमुक्तों में मुक्त संज्ञा जो कर्म बन्धन से मुक्त नहीं हुए, जो भगवत् पदवी को प्राप्त नहीं हुए, उन्हें कर्मबन्धन से रहित या भगवान समझना मिथ्यात्व *409*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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