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सम्यक्त्वहेतुत्वाद्यस्मात्ते मिथ्यादृष्टयस्तैश्चैव समयैर्नोदिताः सन्तः केचित्स्वपक्षदृष्टीस्त्यजन्ति, तदेतन्मिथ्याश्रुतम् ॥ सूत्र ४२ ॥
पदार्थ-से किं तं मिच्छासुअं?-अथ उस मिथ्याश्रुत का स्वरूप क्या है?, मिच्छासुअं-मिथ्याश्रुत, अण्णाणिएहि-अज्ञानी, मिच्छादिट्ठिएहि-मिथ्यादृष्टियों द्वारा, सच्छंद-स्वाभिप्राय, बुद्धी-अवग्रह और ईहा, मइ-मति-अपाय और धारणा से, विगप्पिअंविकल्पित, जं-जो, इमं यह, भारह-भारत, रामायणं-रामायण, भीमासुरुक्खं-भीमासुरोक्त, कोडिल्लयं-कौटिल्य, सगडभद्दिआओ-शकटभद्रिका, खोड (घोडग) मुहं-खोडा-घोटक मुख, कप्पासिअं-कार्पासिक, नागसुहुमं-नागसूक्ष्म, कणगसत्तरी- कनकसप्तति, वइसेसिअंवैशेषिक, बुद्धवयणं-बुद्धवचन, तेरासिअं-त्रैराशिक, काविलिअं- कापिलीय, लोगाययंलोकायत, सट्ठितंतं-षष्टितन्त्र, माढरं-माठर, पुराणं-पुराण, वागरणं-व्याकरण, पायंजलीपातञ्जलि, पुस्सदेवयं-पुष्यदैवत, लेह-लेख, गणिअं-गणित, सउणरुअं- शकुनरुत, नाडयाई-नाटक, अहवा-अथवा, बावत्तरि कलाओ-बहत्तर कलाएं, अ-और, संगोवंगासांगोपांग, चत्तारि वेआ-चारों वेद, एयाइं-ये सब, मिच्छदिट्ठिस्स- मिथ्यादृष्टि के, मिच्छत्तपरिग्गहिआई-मिथ्यात्व से ग्रहण किए गए, मिच्छासुअं-मिथ्याश्रुत हैं और, एयाई चेव-यही, सम्मदिट्ठिस्स-सम्यग्दृष्टि के, सम्मत्तपरिग्गहिआइं-सम्यक् रूप से ग्रहण किए गए, सम्मसुअं-सम्यक्-श्रुत हैं, अहवा-अथवा, मिच्छदिट्ठिस्स वि-मिथ्यादृष्टि के भी, एयाई चेव-यही, सम्मसुअं-सम्यक्-श्रुत हैं, कम्हा?-किस लिए, क्योंकि, सम्मत्तहेउत्तणओ-ये सम्यक्त्व में हेतु हैं, जम्हा-जिससे, ते-वे, मिच्छदिट्ठिआ- मिथ्यादृष्टि, तेहिं चेव समएहिं-उन ग्रन्थों से, चोइआ समाणा-प्रेरित किए मए, केइ-कई, सपक्खदिट्ठिओ-अपने पक्ष दृष्टि को, चयंति-छोड़ देते हैं, से त्तं मिच्छासुअं-यह मिथ्याश्रुत का वर्णन हुआ।
भावार्थ-शिष्य ने पूछा-गुरुदेव ! उस मिथ्या-श्रुत का स्वरूप क्या है ?
गुरुजी उत्तर में बोले-मिथ्याश्रुत अल्पज्ञ, मिथ्यादृष्टि और स्वाभिप्राय, बुद्धि व मति से कल्पित किए हुए ये जो भारत अदि ग्रन्थ हैं, अथवा ७२ कलाएं, चार वेद अंगोपांग सहित हैं, ये सभी मिथ्यादृष्टि के मिथ्या रूप में ग्रहण किए हुए, मिथ्या-श्रुत हैं। यही ग्रन्थ सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्व रूप में ग्रहण किए गए सम्यक्-श्रुत हैं। अथवा मिथ्यादृष्टि के भी, यही ग्रन्थ- शास्त्र सम्यक्-श्रुत हैं, क्योंकि ये उन के सम्यक्त्व में हेतु हैं, जिससे कई एक मिथ्यादृष्टि उन ग्रन्थों से प्रेरित होकर स्वपक्ष-मिथ्यादृष्टित्व को छोड़ देते हैं। इस तरह यह मिथ्याश्रुत का स्वरूप है ॥ सूत्र ४२ ॥
टीका-इस सूत्र में मिथ्याश्रुत का उल्लेख किया गया है। मिथ्याश्रुत किसे कहते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जा सकता है कि मिथ्यादृष्टि एवं अज्ञानी जो भी अपनी सूझ-बूझ एवं कल्पना से जनता के सम्मुख विचार रखते हैं, वे विचार तात्विक न होने से मिथ्याश्रुत
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