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का धर्ता हो सकता है। किन्तु उत्पन्न हो गया है ज्ञान - दर्शन जिन में, यह विशेषण उनमें ही पाया जाता है, जिनके ज्ञान - दर्शन उत्पन्न हो गए हैं।
४. तेलुक्कनिरिक्खियमहियपूइएहिं - तीन लोक में रहने वाले असुरेन्द्रों, नरेन्द्रों तथा देवेन्द्रों के द्वारा तीव्र श्रद्धा-भक्ति से जो अवलोकित हैं, असाधारण गुणों से प्रशंसित हैं तथा मन-वचन और काय के द्वारा वन्दनीय एवं नमस्करणीय हैं, सर्वोत्कृष्ट आदर एवं बहुमान आदि से पूजित हैं। यह पद मायावियों में भी पाया जाता है, जैसे कि कहा भी है“देवागम - नभोयानं, चामरादिविभूतयः । मायाविष्वपि दृश्यन्ते, नातस्वमसि नो महान् ॥
इसलिए इसका व्यवच्छेद करने के लिए विशेषणान्तर प्रयुक्त किया है
५. तीयपडुप्पण्णमणागयजाणएहिं - जो तीनों काल को जानने वाले हैं। यह विशेषण मायावियों में तो नहीं पाया जाता, किन्तु कतिपय व्यवहार नय का अनुसरण करने वाले कहते हैं कि
“ऋषयः संयतात्मानः, फलमूलानिलाशनाः । तपसैव प्रपश्यन्ति, त्रैलोक्यं सचराचरम् ॥'
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अर्थात् विशिष्ट ज्योतिषी तथा अविधज्ञानी भी तीन काल को उपयोग पूर्वक जान सकते हैं, इसलिए सूत्रकार ने कहा है
६. सव्वण्णूहिं- जो विश्व के उदरवर्ती सभी पदार्थों को हस्तामलकवत् जानते हैं, जिनके ज्ञानदर्पण में सभी द्रव्य और सभी पर्याय प्रतिबिम्बित हो रहे हैं। जिनका ज्ञान इतना महान् है, जो कि नि:सीम है। अतः यह विशेषण प्रयुक्त किया है
७. सव्वदरिसीहिं- जो सभी द्रव्यों और उनकी सभी पर्यायों का साक्षात्कार करते हैं। जो इन सात विशेषणों से सम्पन्न होते हैं, वस्तुत: सर्वोत्तम आप्त वे ही होते हैं। वे ही द्वादशांग गणिपिटक के प्रणेता हैं। वे ही सम्यक् श्रुत के रचयिता होते हैं। सातों विशेषण तृतीयान्त हैं और ये तेरहवें गुणस्थानवर्ती जीवन्मुक्त उत्तम पुरुषों के हैं, न कि अन्य पुरुषों के । पणीअं यह क्रिया है। दुवालसंगं गणिपिडगं यह कर्म है। अतः यह वाक्य कर्मवाच्य है, कर्तृवाच्य।
वे बारह अंग सम्यक्-श्रुत हैं, उन्हें गणिपिटक भी कहते हैं। गणिपिटक - जैसे बहुत बड़े धनाढ्य या महाराजा के यहां पेटी या सन्दूक उत्तमोत्तम रत्न, मंणि, हीरे, पन्ने, वैडूर्य आदि पदार्थों और सर्वोत्तम आभूषणों से भरे हुए होते हैं, वैसे ही गणपति आचार्य के यहां विचित्र प्रकार की शिक्षाएं, उपदेश, नवतत्त्व निरूपण, द्रव्यों का विवेचन, धर्मकथा, धर्म की व्याख्या, आत्मवाद, क्रियावाद, कर्मवाद, लोकवाद, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, प्रमाणवाद, नयवाद, स्याद्वाद, अनेकान्तवाद - तीर्थंकर बनने के उपाय, सिद्ध भगवन्तों
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