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श्रोत्रेन्द्रिय स्पृष्ट होने पर ही अपने विषय को ग्रहण करता है। चक्षुरिन्द्रिय बिना स्पृष्ट किए ही रूप को ग्रहण करता है। घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय ये अपने-अपने विषय को बद्धस्पृष्ट होने पर ही ग्रहण करते हैं। इस विषय में वृत्तिकार के निम्न शब्द हैं
"तत्र स्पृष्टमित्यात्मनाऽलिंगितं बद्धं-तोयवदात्मप्रदेशैरात्मीकृतम् -आलिंगितानन्तरमात्मप्रदेशैरागृहीतमित्यर्थः।" ___12 योजन से आए हुए शब्द को सुनना, यह श्रोत्रेन्द्रिय कि उत्कृष्ट शक्ति है। 9 योजन से आए हुए गन्ध, रस, और स्पर्श के पुद्गलों का ग्रहण करने की घ्राण, रसना एवं स्पर्शन इन्द्रियों की उत्कृष्ट शक्ति है। चक्षुरिन्द्रिय की शक्ति रूप को ग्रहण करने की लाख योजन से कुछ अधिक है। यह कथन अभास्वर द्रव्य की अपेक्षा से समझना चाहिए, किन्तु भास्वर द्रव्य तो 21 लाख योजन से भी देखा जा सकता है। जघन्य से तो अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र पुद्गलद्रव्य को सभी इन्द्रियां अपने-अपने विषय को ग्रहण कर सकती हैं।
शब्द रूप में परिणत भाषा के पुद्गल यदि समश्रेणि में लहर की तरह फैलते हुए हमारे सुनने में आते हैं तो उसी सम श्रेणी में विद्यमान अन्य भाषा वर्गणा के पुद्गल से मिश्रित सुनने में आते हैं। यदि विश्रेणि में भाषा के पुद्गल चले जाएं, तो नियमेन अन्य प्रबल पुद्गल से टकराकर, अन्य-अन्य शब्दों से मिश्रित होकर सुनने में आते हैं। इस विषय में वृत्तिकार के शब्द निम्नलिखित हैं, जैसे कि
"भाष्यत इति भाषा-वाक् शब्दरूपतया उत्सृज्यमाना द्रव्यसंततिः, सा च वर्णात्मिका भेरीभांकारादिरूपा वा द्रष्टव्या, तस्याः समाः श्रेणयः, श्रेणयो नाम क्षेत्रप्रदेशपंक्तयोऽभिधीयन्ते, ताश्च सर्वस्यैव भाषमाणस्य षट्सु दिक्षु भिद्यन्ते यासूत्सृष्टा सती भाषा प्रथमसमय एव लोकान्तमनुधावति-इत्यादि।"
इससे भली-भांति सिद्ध हुआ कि भाषा पुद्गल मिश्र रूप में सुने जाते हैं। वे चतुःस्पर्शी भाषा के पुद्गल जब बाहर के पुद्गलों से संमिश्र हो जाते हैं, तब वे आठ स्पर्शी हो जाते हैं।
मतिज्ञान के पर्यायवाची शब्द निम्नलिखित हैं, जैसे किईहा-सदर्थ का पर्यालोचन। अपोह-निश्चय करना। विमर्श-ईहा और अवाय के मध्य में होने वाली विचार सरणी। मार्गणा-अन्वय धर्मानुरूप अन्वेषण करना। गवेषणा-व्यतिरेक धर्म से व्यावृत्ति करना।
संज्ञा-पहले अनुभव की हुई और वर्तमान में अनुभव की जाने वाली वस्तु की एकता के अनुसंधान को संज्ञा कहते हैं, जिस का दूसरा नाम प्रत्यभिज्ञान भी है।
स्मृति-पहले अनुभव की हुई वस्तु का स्मरण करना।
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