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भावार्थ-श्रोत्र इन्द्रिय के द्वारा स्पृष्ट हुआ शब्द सुना जाता है, किन्तु रूप को बिना स्पृष्ट किए ही देखता है, 'तु' शब्द का प्रयोग ‘एवकार' के अर्थ में हैं, इससे चक्षुरिन्द्रिय अप्राप्यकारी सिद्ध किया गया है। गन्ध, रस और स्पर्श को बद्ध-स्पृष्ट अर्थात् घ्राणादि इन्द्रियों से बाद्ध स्पृष्ट हुए को ही कहना चाहिए अर्थात् घ्राण, रसन और स्पर्शन इन्द्रियों से बद्धस्पृष्ट हुआ पुद्गल जाना जाता है। मूलम्-५. भासा-समसेढीओ, सदं जं सुणइ मीसियं सुणइ ।
. वीसेढी पुण सदं, सुणेइ नियमा पराघाए ॥ ८६ ॥ छाया-५. भाषा-समश्रेणीतः, शब्दं यं श्रृणोति मिश्रितं श्रृणोति ।
.... विश्रेणिं पुनः शब्द, श्रृणोति नियमात्पराघाते ॥८६॥ पदार्थ-भासा-वक्ता द्वारा छोड़े जाते हुए पुद्गल-समूह को, समसेढीओ-समश्रेणियों में स्थित, जं-जिस, सदं-शब्द को, सुणइ-सुनता है उसको, मीसियं-मिश्रित को, सुणइसुनता है।, पुण-पुनः, वीसेढी-विश्रेणि व्यवस्थित, सइं-शब्द को श्रोता, नियमा-नियम से, पराघाए-पराघात होने पर ही सुनता है।
भावार्थ-वक्ता द्वारा छोड़े जाते हुए भाषारूप पुद्गल समूह को समश्रेणियों में स्थित जिस शब्द को श्रोता सुनता है, उसे नियमेन अन्य शब्दों से मिश्रित ही सुनता है। विश्रेणि व्यवस्थित शब्द को श्रोत्य-सुनने वाला नियम से पराघात होने पर ही सुनता है। मूलम-६ ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा ।
सन्ना-सई-मई-पन्ना, सव्वं आभिणिबोहियं ॥ ८७ ॥ से तं आभिणिबोहियनाण-परोक्खं, से तं मइनाणं ॥ सूत्र ३७ ॥ छाया-६. ईहा अपोह-विमर्शः, मार्गणा च गवेषणा । .. .संज्ञा-स्मृतिः मति-प्रज्ञा, सर्वमाभिनिबोधिकम् ॥८७॥
तदेतदाभिनिबोधिकज्ञान-परोक्षं, तदेतन्मतिज्ञानम् ॥ सूत्र ३७ ॥ पदार्थ-ईहा-सदर्थ पर्यालोचन रूप, अपोह-निश्चय रूप, वीमंसा-विमर्श रूप, य-और, मग्गणा-अन्वयधर्म रूप, गवेसणा-व्यतिरेक धर्म रूप तथा, सन्ना-संज्ञा, सई-स्मृति, मई-मति और, पन्ना-प्रज्ञा ये, सव्वं-सब, आभिणिबोहियं-आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायवाची नाम हैं, से त्तं आभिणिबोहियनाण-परोक्खं-इस प्रकार यह मतिज्ञान का स्वरूप है। से तं मइनाणं-मतिज्ञान सम्पूर्ण हुआ।
भावार्थ-ईहा-सदर्थ पर्यालोचन रूप, अपोह-निश्चयात्मकज्ञान, विमर्श, मार्गणा अन्वयधर्मरूप और गवेषणा-व्यतिरेक धर्मरूप तथा संज्ञा, स्मृति, मति और प्रज्ञा ये सब आभिनि- बोधिकमतिज्ञान के पर्यायवाची नाम हैं। यह आभिनिबोधिकज्ञान-परोक्ष का विवरण पूर्ण हुआ। इस प्रकार मतिज्ञान का प्रकरण सम्पूर्ण हुआ ॥ सूत्र ३७ ॥
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