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२. खेत्तओ णं आभिणिबोहिअनाणी आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ, न पासइ।
३. कालओ णं आभिणिबोहिअनाणी आएसेणं सव्वं कालं जाणइ, न पासइ।
४. भावओ णं आभिणिबोहिअनाणी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ, न पासइ।
छाया-तत्समासतश्चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतो, भावतः। १. तत्र द्रव्यतो आभिनिबोधिकज्ञानी-आदेशेन सर्वाणि द्रव्याणि जानाति, न पश्यति। २. क्षेत्रतः आभिनिबोधिकज्ञानी-आदेशेन सर्वं क्षेत्रं जानाति, न पश्यति। ३. कालतः आभिनिबोधिकज्ञानी-आदेशेन सर्वं कालं जानाति, न पश्यति। ४. भावतः आभिनिबोधिकज्ञानी-आदेशेन सर्वान् भावान् जानाति, न पश्यति।
भावार्थ-वह आभिनिबोधिक-मतिज्ञान संक्षेप में चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है,जैसे-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। इनमें
१. द्रव्य से मतिज्ञान का धर्ता सामान्य प्रकार से सब द्रव्यों को जानता है, किन्तु देखता नहीं।
२. क्षेत्र से मतिज्ञानी सामान्यरूप से सर्व क्षेत्र को जानता है, किन्तु देखता नहीं। ३. काल से मतिज्ञानी सामान्यतः तीन काल को जानता है, किन्तु देखता नहीं। ४. भाव से मतिज्ञान वाला सामान्यतः सब भावों को जानता है, परन्तु देखता नहीं। ... आभिनिबोधिक ज्ञान का उपसंहार मूलम्-१. उग्गह ईहाऽवाओ य, धारणा एव हुँति चत्तारि ।
आभिणिबोहियनाणस्स, भेयवत्थू समासेणं ॥ ८२ ॥ छाया-१. अवग्रह ईहाऽवायश्च, धारणा-एवं भवन्ति चत्वारि।
. आभिनिबोधिकज्ञानस्य, भेदवस्तूनि समासेन ॥८२ ॥ भावार्थ-आभिणिबोहियनाणस्स-आभिनिबोधिक ज्ञान के, उग्गह ईहाऽवाय-अवग्रह, ईहा, अवाय, य-और, धारणा-धारणा, चत्तारि-चार, एव-क्रम प्रदर्शन के लिए, भेयवत्थूभेद-विकल्प, हुति-होते हैं।
भावार्थ-आभिनिबोधिकज्ञान-मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा क्रम से ये चार भेद-वस्तु-विकल्प संक्षेप में होते हैं।
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