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के विषय को अनभ्यस्तावस्था में कुछ विलंब से जानना, यथाशीघ्र नहीं। ___७. अनिश्रित-बिना ही किसी हेतु के, बिना किसी निमित्त के वस्तु की पर्याय और गुण को जानना। व्यक्ति के मस्तिष्क में ऐसी सूझ-बूझ पैदा होना, जबकि वही बात किसी शास्त्र या पुस्तक में भी लिखी हुई मिल जाए।
८. निश्रित-किसी हेतु, युक्ति, निमित्त, लिंग, प्रमिति आदि के द्वारा जानना। एक ने शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही उपयोग की एकाग्रता से अकस्मात् चन्द्र दर्शन कर लिए, दूसरे ने किसी बाह्य निमित्त से चन्द्र दर्शन किए, इन में पहला पहली कोटि में और दूसरा दूसरी कोटि में गर्भित हो जाता है।
९. असंदिग्ध-किसी व्यक्ति ने जिस पर्याय को जाना, वह भी बिना ही संदेह के जाना, जैसे यह माल्टे का रस है, यह नारंगी का है यह सन्तरे का रस है। यह गुलाब, गेन्दा, चम्पा, चमेली, जूही, मौलसिरी है इत्यादि। स्पर्श से, तथा गन्ध से अन्धकार में भी उन्हें पहचान.लेना। अपने अभीष्ट व्यक्ति को दूर आते हुए ही पहचान लेना। यह सोना है,यह पीतल है, यह वैडूर्य मणि है, यह कांचमणि है, इस प्रकार बिना संदेह किए पहचानना।
१० संदिग्ध-कुछ अन्धेरे में यह ढूंठ है या कोई महाकाय वाला व्यक्ति है, यह धुआं है या बादल, यह पीतल है या सोना, यह रजत है या शुक्ति, इस प्रकार किसी वस्तु को संदिग्ध रूप से जनना, क्योंकि व्यावर्तक के बिना सन्देह दूर नहीं होता।
११. ध्रुव-इन्द्रिय और मन, इन का निमित्त सही मिलने पर विषय को नियमेन जानना। कोई मशीन का पुर्जा खराब होने से मशीन अपना काम ठीक नहीं कर रही। यदि तद्विषयक विशेषज्ञ चीफ इंजीनियर आकर नुक्स को देखता है तो यह अवश्यंभावी है कि वह खराब हुए पुर्जे को पहचान लेता है। इसी प्रकार जो जिस विषय का विशेषज्ञ है, उसे तद्विषयक गुण-दोष का जान लेना अवश्यंभावी है।
१२. अध्रुव-निमित्त मिलने पर भी कभी ज्ञान होता है और कभी नहीं, कभी चिरकाल तक रहने वाला होता है, कभी नहीं। .. ___बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिश्रित, असंदिग्ध और ध्रुव इन में विशिष्ट क्षयोपशम, उपयोग की एकाग्रता, अभ्यस्तता, ये असाधारण कारण हैं। तथा अल्प, अल्पविध, अक्षिप्र, निश्रित, संदिग्ध और अध्रुव, इन से होने वाले ज्ञान में क्षयोपशम की मन्दता, उपयोग की विक्षिप्तता, अनभ्यस्तता, ये अन्तरंग असाधारण कारण हैं। किसी के चक्षुरिन्द्रिय की प्रबलता होती है, तो अपने अनुकूल-प्रतिकूल तथा शत्रु-मित्र और किसी अभीष्ट वस्तु को बहुत दूर से ही देख लेता है। किसी के श्रोत्रेन्द्रिय बड़ी प्रबल होती है, वह मन्दतम शब्द को भी बड़ी आसानी से सुन लेता है। जिससे वह साधक और बाधक कारणों को पहले से ही जान लेता है। किसी की घ्राणेन्द्रिय तीव्र होती है, वह परोक्ष में रही हुई वस्तु को भी ढूंढ लेता है। मिट्टी को सूंघ
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