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________________ लिए मध्य मंगल सहयोग देता है। शिष्य प्रशिष्यों में मंगलाचरण की परम्परा चालू रखने के लिए अंतिम मंगल किया जाता है। इसी विषय में जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण अपने भाव विशेषावश्यकभाष्य में व्यक्त करते हैं, यथा बहुविघ्नानि श्रेयांसि, तेन कृतमंगलोपचारैः । ग्रहीतव्यः सुमहानिधि-रिव यथा वा महाविद्या ॥ तद् मंगलमादौ मध्ये, पर्यन्तके च शास्त्रस्य । प्रथमं शास्त्रार्थऽविघ्न- पारगमनाय निर्दिष्टम् ॥ तस्यैव च स्थैर्यार्थं, मध्यमकमन्तिममपि तस्यैव । अव्यवच्छित्ति निमित्तं, शिष्यप्रशिष्यादि वंशस्य ॥ जिसके द्वारा अनायास हित में प्रगति हो जाए वह मंगल है। कहा भी है- मंग्यते हितमनेनेति मंगलम्। अनेक व्यक्ति मंगलाचरण करने पर भी अपने कार्य में सफलता प्राप्त नहीं करते, कतिपय बिना ही मंगलाचरण किए सफल सिद्ध होते हैं, इसमें मुख्य रहस्य क्या है? इसके मुख्य रहस्य की बात यह है कि उत्तमविधि से मंगलाचरण की न्यूनता और विघ्नों की प्रबलता तथा विघ्नों का सर्वथा अभाव ही हो सकता है। अन्य कोई कारण इसमें दृष्टिगोचर नहीं होता। स्वतः मंगल में मंगलाचरण क्यों? ___ जब अन्य-अन्य ग्रंथ की रचना स्वतन्त्र रूप से करनी होती है, तब तो उसके आदि में मंगलाचरण की आवश्यकता होती है, किन्तु जिनवाणी तो स्वयं मंगल रूप है, फिर इस सूत्र के आदि में मंगलाचरण हेतु अर्हत्स्तुति, वीरस्तुति, संघस्तुति, तीर्थंकरावलि, गणधरावलि, जिनशासनस्तुति और स्थविरावलि में सुधर्मा स्वामी से लेकर आचार्य दूष्यगणी तक जितने प्रावनिक आचार्य हुए, उनके नाम, गोत्र, वंश आदि का परिचय दिया और साथ ही उन्हें वन्दन भी किया। गुणानुवाद और वन्दन ये सब मंगल ही हैं, तथैव आगम भी मंगल है। फिर मंगल में मंगल का प्रयोग क्यों? यदि मंगल में भी मंगल का प्रयोग करते ही जाएं तो वह अनवस्था दोष है ? प्रश्न सुन्दर एवं मननीय है । इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि आगम स्वयं मंगल रूप है। इस विषय में किसी को कोई सन्देह नहीं है। शुभ उद्देश्य सबके भिन्न-भिन्न होते हैं, उसकी पूर्ति निर्विघ्नता से हो जाए, इसी कारण आदि में मंगल किया जाता है । जिस प्रकार 1. यह प्राकृत गाथाओं की संस्कृत छाया है। *30 -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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