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नो चैव जानाति को वैष स्पर्श' इति? तत ईहां प्रविशति, ततो जानाति 'अमुक एष स्पर्श' इति। ततोऽवायं प्रविशति, ततः स उपगतो भवति, ततो धारणां प्रविशति, ततो धारयति संख्येयं वा कालमसंख्येयं वा कालम्। __स यथानामकः कश्चित्पुरुषोऽव्यक्तं स्वप्नं पश्येत्, तेन ‘स्वप्न' इत्यवगृहीतम्, नो चैव जानानि 'को वैष स्वप्न' इति? तत ईहां प्रविशति, ततो जानाति 'अमुक एष स्वप्नः। ततोऽवायं प्रविशति, ततो स उपगतो भवति, ततो धारणां प्रविशति, ततो धारयति संख्येयं वा कालमसंख्येयं वा कालम्। सैषा (प्ररूपणा) मल्लकदृष्टान्तेन ॥ सूत्र ३६ ॥ ___पदार्थ से जहानामए-अथ जैसे यथानामक, केइ पुरिसे-कोई व्यक्ति, अव्वत्तं-अव्यक्त, सद-शब्द को, सुणिज्जा-सुनकर, तेणं सहोत्ति-यह कोई शब्द है, इस प्रकार, उग्गहिए-ग्रहण किया किन्तु वंह, नो चेव णं जाणइ-निश्चय ही नहीं जानता है कि, के वेस सद्दाइ?-यह किसका शब्द है?, तओ तब, ईह-ईहा, में पविसइ-प्रवेश करता है, तओ जाणइ-तब जानता है, अमुगे एस एद्दे-यह अमुक शब्द है, तओ अवायं पविसइ-तत्पश्चात् अवाय में प्रविष्ट होता है, तओ से उवगयं हवइ-तब उसे उपगत हो जाता है, तओ धारणं पविसइ-तब धारणा में प्रवेश करता है, तओणं-तब, संखिजंवा कालं-संख्यातकाल अथवा, असंखिज्जं वा कालं-असंख्यातकाल पर्यन्त, धारेइ-धारण करता है। - से जहानामए-अथ जैसे, केई, पुरिसे-कोई पुरुष, अव्वत्तं रूवं-अव्यक्त रूप को, पासिज्जा-देखे, तेणं-उसने, रूवेत्ति-यह कोई रूप है, इस प्रकार, उग्गहिए-ग्रहण किया, परन्तु, नो चेव णं जाणइ-वह यह नहीं जानता कि, के वेस रूवत्ति-यह किस का रूप है?, तओ ईहं पविसइ-तत्पश्चात् ईहा में प्रवेश करता है, तओ-तब, अमुगे एस रूवे त्ति-यह
अमक रूप है. इस प्रकार जाणड-जानता है. तओ-तब.अवायं पविसह-अवाय में प्रविष्ट होता है, तओ-पश्चात्, से-उसे, उवगयं-उपगत, भवइ-हो जाता है, तओ धारणं पविसइ-तदनन्तर धारणा में प्रवेश करता है, तओणं-तब, संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं-संख्यात व असंख्यातकाल तक, धारेइ-धारण करता है।
से जहानामए-अथ-यथानामक, केइ पुरिसे-कोई पुरुष, अव्वत्तं गंधं अग्घाइज्जाअव्यक्त गन्ध को सूंघता है, तेणं-उसने, गंधत्ति-यह कोई गन्ध है, इस प्रकार, उग्गहिए-ग्रहण किया, नो चेव णं जाणइ-परन्तु वह यह नहीं जानता कि, के वेस गंधत्ति?-यह कौन-सी गन्ध है? तओ ईहं पविसह-तदनन्तर ईहा में प्रवेश करता है, तओ-तब, अमगे एस गंधे-यह अमुक प्रकार की गन्ध है, जाणइ-ऐसा जानता है, तओ अवायं पविसइ-तब अवाय में प्रवेश करता है, तओ से उवगयं भवइ-तब उसे उपगत होता है, ततो धारणं पविसइ-तब धारणा में प्रवेश करता है, तओ णं-तब, संखिज्जं वा कालं असंखिज्जं वा कालं- संख्यात व असंख्यात काल तक, धारेइ-धारण करता है।
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