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से जहानामए-अथ यथानामक, केइ पुरिसे-कोई पुरुष, अव्वत्तं-अव्यक्त, रसं-रस को, आसाइज्जा-आस्वादन करे, तेणं-उस ने, रसोत्ति-यह कोई रस है, इस प्रकार, उग्गहिएग्रहण किया, नो चेव णं जाणइ-परन्तु वह यह नहीं जानता कि, के वेस रसे त्ति?-यह कौन-सा रस है?, तओ ईहं पविसइ-तदनन्तर ईहा में प्रवेश करता है, तओ जाणइ-तब वह जानता है कि, अमुगे एस रसे-यह अमुक रस है, तओ अवायं पविसइ-तब अवाय में प्रवेश करता है, तओ से-तब वह, उवगयं हवइ-उपगत होता है, तओ धारणं पविसइ-तब धारणा में प्रवेश करता है, तओ णं-तब, संखिज्जं वा कालं असंखिज्जं वा कालं-संख्यात या असंख्यात काल तक, धारेइ-धारण किए रहता है।
से जहानामए-यथानामक, केइ पुरिसे-कोई पुरुष, अव्वत्तं फासं-अव्यक्त स्पर्श को, पडिसंवेइज्जा-स्पर्श करे, तेणं-उसने, फासत्ति-यह कोई स्पर्श है इस प्रकार, उग्गहिए-ग्रहण किया, नो चेव णं जाणइ-किन्तु वह यह नहीं जानता कि, के वेस फासो त्ति?-यह किस का स्पर्श है?, तओ ईहं पविसइ-तब ईहा में प्रवेश करता है, तओ जाणइ-तब जानता है कि, अमुगे एस फासे-यह अमुक स्पर्श है, तओ धारणं पविसइ-तब धारणा में प्रवेश करता है, तओ णं-तब, संखेज्जं वा कालं असंखेन्जं कालं-संख्यात और असंख्यात काल तक, धारेइ-धारण करता है।
से जहानामए-अथ यथानामक, केइ पुरिसे-कोई पुरुष, अव्वत्तं-अव्यक्त, सुविणंस्वप्न को, पासिज्जा-देखे, तेणं-उसने, सुमिणो त्ति-यह स्वप्न है, इस प्रकार, उग्गहिए-ग्रहण किया, नो चेव णं जाणइ-परन्तु वह यह नहीं जानता कि, के वेस सुमिणे त्ति?-यह कैसा स्वप्न है?, तओ ईहं पविसइ-तब ईहा में प्रवेश करता है, तओ जाणइ-तब जानता है कि, अमुगे एस सुमिणे त्ति-यह अमुक स्वप्न है, तओ अवायं पविसइ-तदनन्तर अवाय में प्रवेश करता है, तओ से उवगयं होइ-तब वह उपगत होता है, तओ धारणं पविसइ-तब धारणा में प्रविष्ट होता है, तओ-तब, संखेन्जंवा कालं असंखेन्जंवा कालं-संख्यात व असंख्यातकाल तक, धारेइ-धारण किए रहता है।, से त्तं मल्लग-दिद्रुतेणं-इस प्रकार यह मल्लक के दृष्टान्त से व्यंजन अवग्रह का स्वरूप पूर्ण हुआ है। ____ भावार्थ-जैसे यथानामक किसी व्यक्ति ने अव्यक्त शब्द को सुनकर 'यह कोई शब्द है' इस प्रकार ग्रहण किया, किन्तु वह निश्चय ही यह नहीं जानता है कि 'यह शब्द किस का है?' तब ईहा में प्रवेश करता है, फिर यह जानता है कि 'यह अमुक शब्द है'। तब अवाय-निश्चयज्ञान में प्रवेश करता है। तदनन्तर उसे उपगत हो जाता है, तत्पश्चात् धारणा में प्रवेश करता है, तब संख्यातकाल और असंख्यातकाल पर्यन्त उसे धारण करता है।
जैसे-अज्ञात नामवाला कोई पुरुष अव्यक्त-अस्पष्ट रूप को देखे, उसने 'यह कोई रूप है' इस प्रकार ग्रहण किया, परन्तु वह यह नहीं जानता कि 'यह किस का रूप है'?
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