________________
पर्यायान्तर में कथन किए गए हैं। जिस क्रम से ज्ञान उत्तरोत्तर विकसित होता है, उसी क्रम से सूत्रकार ने अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा का भी निर्देश किया है। अवग्रह के बिना हा नहीं, ईहा के बिना अवाय नहीं और इसी प्रकार अवाय के बिना धारणा नही हो सकती । अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के विषय में जिनभद्रगणी क्षमाश्रमणजी निम्न प्रकार से लिखते हैं
"सामण्णमेत्तगहणं, निच्छयओ समयमोग्गहो पढमो । तत्तोऽतरमीहिय, वत्थु विसेसस्स जोऽवाओ ॥ सो पुणरीहावायविक्खाओ, उग्गहत्ति उवयरिओ । एस विसेसावेक्खा, सामन्नं गेहए जेण ॥ तत्तोऽतरमीहा तओ, अवाओ य तव्विसेसस्स । इह सामन्न विसेसावेक्खा, जावन्तिमो भेओ ॥ सव्वत्थेहावाया निच्छयओ, मोत्तुमाइ सामन्नं । संववहारत्थं पुण, सव्वत्थावग्गहोऽवाओ ॥ तरतमजोगाभावेऽवाओ, च्चिय धारणा तदन्तम्मि । सव्वत्थ वासणा पुण, भणिया कालन्तर सई य ॥"
अवग्रहादि का काल परिमाण
मूलम्-१. उग्गहे इक्कसमइए, २. अंतोमुहुत्तिआ ईहा, ३. अंतोमुहुत्तिए अवाए। ४. धारणा संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं ॥ सूत्र ३५॥
छाया-१. अवग्रह एकसामयिकः, २. आन्तर्मुहूर्तिकीहा, ३. आन्तर्मुहूर्तिकोऽवायः, ४. धारणा संख्येयं वा कालमसंख्येयं वा कालम् ॥ सूत्र ३५ ॥
पदार्थ-उग्गहे—अवग्रह, इक्कसमइए - एक समय का होता है, ईहा - ईहा, अंतोमुहुत्तिया - अन्तर्मुहूर्त की होती है, अवाए - अवाय, अंतोमुहुत्तिए - अन्तर्मुहूर्त का होता है, धारणाधारणा, संखेज्जं वा कालं संख्येय काल और, असंखेज्जं वा कालं - यौगलिक आदि की अपेक्षा से असंख्यात काल की है।
भावार्थ - १. अवग्रह ज्ञान का काल परिमाण एक समय मात्र है, २. अन्तर्मुहूर्त्त परिमाण ईहा का समय है, ३. अवाय भी अन्तर्मुहूर्त्त परिमाण में होता है, ४. धारणा का काल परिमाण संख्यात काल अथवा युगलियों की अपेक्षा से असंख्यात काल पर्यन्त भी है | सूत्र ३५ ॥
टीका - इस सूत्र में उक्त चारों के काल परिमाण का निरूपण किया है। अर्थावग्रह एक समय का होता है। ईहा और अवाय ये दोनों अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण तक रहते हैं तथा धारणा
❖ 368❖