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________________ अन्तर्मुहूर्त से लेकर संख्यात काल और असंख्यात काल पर्यन्त रह सकती है। इसका कारण यह है कि यदि किसी संज्ञी प्राणी की आयु संख्यात काल की हो, तो धारणा संख्यात काल पर्यन्त और यदि असंख्यात काल की हो, तो असंख्यात काल पर्यन्त होती है। ___यदि किसी को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न होता है, तो वह भी धारणा की प्रबलता से ही हो सकता है। प्रत्यभिज्ञान भी इसी की देन है। अवाय हो जाने के पश्चात् फिर भी उपयोग यदि उसी में लगा हुआ हो, तो उसे अवाय नहीं, अपितु अविच्युति धारणा कहते हैं। अविच्युति धारणा ही वासना को दृढ़ करती है। वासना जितनी दृढ होगी, निमित्त मिलने पर वह स्मृति को उबुद्ध करने में कारण बनती है। भाष्यकार ने भी उक्त चारों प्रकार का कालमान निम्नलिखित बताया है- . "अत्थोग्गहो जहन्नं समओ, सेसोग्गहादओ वीसुं। अन्तोमुहुत्तमेगन्तु, वासणा धारणं मोत्तुं ॥" इस का भाव ऊपर लिखा जा चुका है ।। सूत्र 35 ।। - प्रतिबोधक के दृष्टान्त से व्यंजनावग्रह मूलम्-एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि, पडिबोहगदिद्रुतेण मल्लगदिद्रुतेण य। से किं तं पडिबोहगदिद्रुतेणं ? पडिबोहगदिद्रुतेणं, से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिज्जा-"अमुगा! अमुगत्ति !!" तत्थ चोयगे पन्मवगं एवं वयासी-किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? एवं वदंतं चोयगं पण्णवए एवं वयासी-नो एगसमय-पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमय-पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव-नो दससमय पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखिज्जसमय-पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से त्तं पडिबोहगदिट्ठतेणं। ___ छाया-एवमष्टाविंशतिविधस्य आभिनिबोधिकज्ञानस्य व्यञ्जनावग्रहस्य प्ररूपणं करिष्यामि प्रतिबोधकदृष्टान्तेन मल्लकदृष्टान्तेन च । * 369 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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