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४. धारणा मूलम्-से किं तं धारणा ? धारणा छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-१. सोइंदिय-धारणा, २. चक्विंदिय-धारणा, ३. घाणिंदिय- धारणा, ४. जिब्भिंदिय-धारणा, ५. फासिंदिय-धारणा, ६. नोइंदिय- धारणा। तीसे णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा, नाणावंजणा, पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा-१. धारणा, २. साधारणा, ३. ठवणा, ४. पइट्ठा, ५. कोठे, से त्तं धारणा ॥ सूत्र ३४॥
छाया-अथ का सा धारणा? धारणा षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-१. श्रोत्रेन्दियधारणा, २. चक्षुरिन्द्रिय-धारणा, ३. घ्राणेन्द्रिय-धारणा, ४. जिह्वेन्द्रिय-धारणा, ५. स्पर्शेन्द्रिय-धारणा, ६. नोइन्द्रिय- धारणा। तस्या इमानि एकार्थिकानि नानाघोषाणि, नानाव्यंजनानि पञ्च नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा-१.धारणा, २. साधारणा, ३.स्थापना, ४. प्रतिष्ठा, ५. कोष्ठः, सा एषा धारणा ॥ सूत्र ३४॥
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-गुरुदेव ! वह धारणा कितने प्रकार की है? उत्तर में गुरुजी बोले-भद्र ! वह छ प्रकार की है, जैसे-१. श्रोत्रेन्द्रिय-धारणा, २. चक्षुरिन्द्रियधारणा, ३. घ्राणेन्द्रिय-धारणा, ४. रसनेन्द्रिय-धारणा, ५. स्पर्शेन्द्रिय-धारणा, ६. नोइन्द्रियधारणा। उसके ये एक अर्थ वाले, नानाघोष और नाना व्यंजन वाले पांच नाम होते हैं-जैसे १. धारणा, २. साधारणा, ३. स्थापना, ४. प्रतिष्ठा, और ५. कोष्ठ, इस प्रकार यह धारणा मतिज्ञान है ॥ सूत्र ३४॥
टीका-इस सूत्र में धारणा का उल्लेख किया गया है। उसके भी पूर्ववत् 6 भेद हैं तथा एकार्थक नानाघोष तथा नानाव्यंजन वाले धारणा के पांच पर्यायवाची नाम कहे हैं
१. धारणा-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट असंख्यात काल व्यतीत होने पर भी योग्य निमित्त मिलने पर जो स्मृति जाग उठे, उसे धारणा कहते हैं।
२. साधारणा-जाने हुए अर्थ को अविच्युति पूर्वक अंतर्मुहूर्त तक धारण किए रखना। ३. स्थापना-निश्चय किए हुए अर्थ को हृदय में स्थापन करना, उसे वासना भी कहते
.. ४. प्रतिष्ठा-अवाय के द्वारा निर्णीत अर्थों को भेद, प्रभेदों सहित हृदय में स्थापन करना प्रतिष्ठा कहलाती है। . ५. कोष्ठ-जैसे कोष्ठ में रखा हुआ धान्य विनष्ट नहीं होता, बल्कि सुरक्षित रहता है, वैसे ही हृदय में सूत्र और अर्थ को सुरक्षित एवं कोष्ठक की तरह धारण करने से ही इसे कोष्ठ कहते हैं। यद्यपि सामान्य रूप से इनका एक ही अर्थ प्रतीत होता है, तदपि भिन्नार्थ भी
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