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________________ दव्वमणो भण्णइ' द्रव्यमन के होते हुए जीव का मनन रूप जो परिणाम है, उसी को भावमन कहते हैं। इसी प्रकार भाव मन के विषय में चूर्णिकार लिखते हैं- “जीवो पुण मणपरिणामकिरियावन्नो भावमणो किं भणियं होइ? मणदव्वालंबणो जीवस्स मणणवावारौ भावमणो भण्णइ।" यहां भाव मन का ही ग्रहण किया गया है। भावमन के ग्रहण करने से द्रव्यमन का भी ग्रहण हो जाता है। द्रव्य मन के बिना भाव मन का काम कार्यान्वित नहीं हो सकता। भाव मन के बिना द्रव्य मन हो सकता है, जैसे भवस्थ केवली के द्रव्यमन होता है। जब वह इन्द्रियों के व्यापार से निरपेक्ष काम करता है, तब नोइन्द्रिय अर्थावग्रहण होता है, अन्यथा वह इन्द्रियों का सहयोगी बना रहता है। जब वह मनन अभिमुख एक सामयिक रूपादि अर्थों का पहली बार सामान्यमात्र से अवबोध करता है, तब उसे नोइन्द्रिय अर्थावग्रह कहते हैं ।। सूत्र 30 ।।। मलम्-तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा, नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तंजहा-ओगेण्हणया, उवधारणया,सवणया, अवलंबणया, मेहा, से तं उग्गहे ॥ सूत्र ३१॥ .. छाया-तस्येमानि एकार्थिकानि नानाघोषाणि, नानाव्यञ्जनानि पञ्च नामधेयानि भवन्ति तद्यथा-अवग्रहणता, उपधारणता, श्रवणता, अवलम्बनता, मेधा स एष अवग्रहः ॥ सूत्र ३१ ॥ ___पदार्थ तस्स णं-उस अर्थावग्रह के 'णं' वाक्यं अलंकारार्थ में, इमे-ये, एगठ्ठिया-एक अर्थ वाले, नाणाघोसा-उदात्त आदि नाना घोष वाले, नाणावंजणा-'क' आदि नाना व्यञ्जन वाले, पंच नामधिज्जा-पांच नामधेय, भवंति-होते हैं, तं जहा-यथा, ओगेण्हणयाअवग्रहणता, उवधारणया-उपधारणता, सवणया-श्रवणता, अवलंबणया-अवलम्बनता, मेहा-मेधा, से त्तं-वह यह, उग्गहे-अवग्रह है। भावार्थ-उस अर्थ अवग्रह के ये एक अर्थ वाले, उदात्त आदि नाना घोष वाले, 'क' आदि नाना व्यञ्जन वाले पांच नाम होते हैं, जैसे कि १. अवग्रहणता, २. उपधारणता, ३. श्रवणता, ४. अवलम्बनता, ५. मेधा। वह यह अवग्रह है ॥ सूत्र ३१ ॥ टीका-इस सूत्र में अर्थावग्रह के पर्यायान्तर नाम दिए गए हैं। प्रथम समय में आए हुए शब्द, रूपादि पुद्गलों का ग्रहण करना अवग्रह कहलाता है। अवग्रह तीन प्रकार का होता है, जैसे कि व्यंजनावग्रह, 2. सामान्यार्थावग्रह, 3. विशेष सामान्यार्थावग्रह, किन्तु विशेष सामान्य अर्थावग्रह औपचारिक है, जिस का स्वरूप आगे वर्णन किया जाएगा। : १. अवग्रहणता-जिस के द्वारा शब्दादि पुद्गल ग्रहण किए जाएं, उसे अवग्रह कहते हैं। व्यंजनावग्रह आन्तौहूर्त्तिक होता है, उसके पहले समय में जो अव्यक्त झलक ग्रहण की *362
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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