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________________ २०. गैंडा - एक गृहस्थ था । युवावस्था में उसने श्रावक के व्रतों को धारण कर लिया। परन्तु यौवन अवस्था के कारण व्रतों को सम्यक्तया पालता नहीं था। इसी बीच वह रोगग्रस्त हो गया और व्रतों की आलोचना नहीं कर पाया। धर्म से पतित हो वह मरकर गैण्डे के रूप में जंगल में पैदा हो गया। वह क्रूर परिणामों से जंगल में अनेक जीवों की घात करने लगा और आते-जाते मनुष्यों को भी मार डालता था। एक बार उसी जंगल में से मुनि जन विहार करते हुए जा रहे थे । साधुओं को देखकर गैंडे को क्रोध आया और उन पर आक्रमण करने का यत्न किया, परन्तु वह अपने उद्देश्य में सफल न हो सका। मुनियों के तपस्तेज और अहिंसा धर्म के आगे उस का हिंसक बल निस्तेज और स्तम्भित हो गया। वह उन्हें देख कर विचार में पड़ गया कि यह क्या कारण है? यह सोचने पर उसका क्रोधावेश शान्त हो गया और विचार करते-करते ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम होते ही जातिस्मरण ज्ञान हो गया। अपने पूर्वभव को जान कर अनशन कर दिया और आयुष्य कर्म पूरा होने पर देवलोक में उत्पन्न हो गया। यह गैण्डे की पारिणामिकी बुद्धि थी। २१. स्तूप-भेदन - राजा श्रेणिक के छोटे पुत्र का नाम विहल्लकुमार था। महाराजा श्रेणिक ने अपने जीवन काल में ही विहल्लकुमार को सेचानक हाथी और अठारह - सार चूड़हार दे दिया था। विहल्ल कुमार अपनी रानियों के साथ हाथी पर सवार होकर सदैव गंगा तट पर जाता और अनेक प्रकार की क्रीड़ा करता । हाथी रानियों को अपनी सूंड से उठा . कर पानी में विविध प्रकार से उन का मनोरञ्जन करता । विहल्लकुमार और रानियों की इस प्रकार की मनोरञ्जक क्रीड़ाएं देख कर जनता के मुंह पर यह बात थी कि वास्तव में राज्य लक्ष्मी का उपभोग तो विहल्लकुमार ही करता है। जब यह समाचार राजा कूणिक की रानी पद्मावती ने सुना तो उस के मन में ईर्ष्या पैदा हुई और विचारने लगी- यदि सेचानक गन्धहस्त मेरे पास नहीं है तो मैं रानी किस नाम की? अतः उसने हाथी लेने के लिए कूणिक से प्रार्थना की। कूणिक ने पहले तो उसकी बात को टाल दिया, परन्तु उसके बार-बार आग्रह करने पर विहल्लकुमार से हार और हाथी मांगे । विहल्लकुमार ने उत्तर में कहा- यदि आप हार और हाथी लेना चाहते हैं, तो मेरे हिस्से का राज्य मुझे दे दीजिए। परन्तु कूणिक ने इस उचित बात पर ध्यान न रख कर उस से बलात् हार और हाथी छीनने का विचार किया। इस बात का पता लगने पर विहल्लकुमार हार - हाथी और अपने अन्तःपुर के साथ अपने नाना राजा चेड़ा के पास विशाला नगरी में चला गया। कूणिक ने दूत भेज कर चेड़ा राजा से विहल्लकुमार और अन्त:पुर सहित हार और हाथी को वापिस भेजने के लिए कहा। दूत के द्वारा कूणिक का सन्देश सुन कर चेड़ा राजा ने उत्तर में कहा- जिस प्रकार कूणिक राजा श्रेणिक का पुत्र और चेलना रानी का आत्मज तथा मेरा दुहित्र है, वैसे ही विहल्लकुमार भी है। अपने जीवन काल में श्रेणिक ने हार और हाथी विहल्लकुमार को दिए हैं। यदि कूणिक इन्हें लेना चाहता है तो विहल्लकुमार को राज्य का हिस्सा दे देवे । दूत ने ❖ 353 ❖
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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