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________________ इसलिए संभलो और संयम की आराधना करने में तत्पर हो जाओ।" मुनि को वेश्या का उपदेश अंकुश सदृश लगा और अपने किए हुए पर पश्चात्ताप किया और कहने लगा “स्थूलभद्रः स्थूलभद्रः स एकोऽखिलसाधुषु । युक्तं दुष्करदुष्करकारको गुरुणा जगे ॥" अर्थात्-"सब साधुओं में एक स्थूलभद्र मुनि ही दुष्कर-दुष्कर क्रिया करने वाला है, जो बारह वर्ष वेश्या की चित्रशाला में रहा और संयम धारण कर पुनः उसके मकान पर चतुर्मास करने गया तथा वेश्या के कामुक हाव-भाव दिखाने पर एवं कामभोग सेवन करने की प्रार्थना करने पर भी मेरु के समान अविचल रहा। इसी कारण गुरु ने जो 'दुष्करदुष्कर' शब्द स्थूलभद्र के लिए कहे थे, वे यथार्थ हैं।" इस प्रकार कहकर वह गुरु के पास आया और आलोचना करके आत्म शुद्धि की। मुनि स्थूलभद्र के इसी दुष्कर-दुष्कर कार्य पर ही तो किसी ने कहा है "गिरौ गुहायां विजने वनान्ते, वासं श्रयन्तो वशिनः सहस्रशः।। हhऽतिरम्ये युवतिजनान्तिके, वशी स एकः शकटालनन्दनः ॥" इसी विषय में और भी कहा है “वेश्या रागवंती सदा तदनुगा, षड्भी रसैर्भोजनं । शुभ्रं धाममनोहरं वपुरहो ! नव्यो वयः संगमः ॥ कालोऽयं जलदानिलस्तदपि यः, कामं जिगायादरात्। तं वन्दे युवतिप्रबोधकुशलं, श्रीस्थूलभद्रं मुनिम् ।।" अर्थात्-पर्वत पर, पर्वत की गुफा में, श्मशान में, और वन में रहकर मन वश करने वाले तो हजारों मुनि हैं, किन्तु सुन्दर स्त्रियों के समीप रमणीय महल के अन्दर रहकर यदि आत्मा को वश में रखने वाला है, तो केवल एक स्थूलभद्र मुनि ही है। , प्रेम करने वाली तथा उसमें अनुरक्त वेश्या, षड्रस भोजन, मनोहर महल, सुन्दर शरीर, तरुणावस्था, वर्षाऋतु का समय, इन सब सुविधाओं के होने पर भी जिसने कामदेव को जीत लिया, ऐसे वेश्या को प्रबोध देकर धर्म मार्ग पर लाने वाले मुनि स्थूलभद्र को मैं प्रणाम करता हूं। राजा नन्द ने स्थूलभद्र को मन्त्री पद देने के लिये बहुत प्रयत्न किया, किन्तु भोगों को नाश और संसार के सम्बन्ध को दुःख का हेतु जान, उन्होंने मन्त्री पद को ठुकरा, संयम स्वीकार कर आत्म-कल्याण में जीवन को लगाया, यह स्थूलभद्र की पारिणामिकी बुद्धि थी। १४. नासिकपुर का सुन्दरीनन्द-नासिकपुर में एक सेठ रहता था, उसका नाम नन्द था। उसकी पत्नी का नाम सुन्दरी था। नाम के अनुसार वह बड़ी सुन्दरी भी थी। नन्द का उसके साथ बहुत प्रेम था। उसे वह अति वल्लभ और प्रिय थी। वह सेठ स्त्री में इतना अनुरक्त था *346* .
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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