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और नित्य की भांति तख्ते पर बैठ कर स्तुति करने लगा। इतने में मंत्री और राजा दोनों वहां पर आ गये। स्तुति समाप्त होने पर जब तख्ते को दबाया तो थैली बाहर नहीं आई। इतने में शकटार ने कहा-"पण्डितराज ! पानी में क्या देखते हो, आप की थैली तो मेरे पास है।" यह कह थैली सबको दिखाई और उसका रहस्य भी जनता को समझाया। मायावी, कपटी आदि शब्द कह कर लोग पण्डितजी की निन्दा करने लगे। वररुचि इससे लज्जित हुआ और मन्त्री से बदला लेने के लिए उसके छिद्र देखने लगा। कुछ समय पश्चात् शकटार अपने पुत्र श्रीयंक का विवाह करने की तैयारी में लग गया। मन्त्री विवाह की प्रसन्नता में राजा को भेंट करने के लिये शस्त्रास्त्र बनवाने लगा। वररुचि को भी इस बात का पता लगा और बदला लेने का अच्छा अवसर देख कर अपने शिष्यों को निम्नलिखित श्लोक स्मरण करवा दिया।
"तं न विजाणेइ लोओ, जंसकडालो करेस्सइ।
नन्दराउंमारेवि करि, सिरियउं रज्जे ठवेस्सइ ॥" अर्थात्-जनता इस बात को नहीं जानती कि शकटार मन्त्री क्या कर रहा है? वह राजा नन्द को मार कर अपने लड़के श्रीयंक को राजा बनाना चाहता है। शिष्यों को यह श्लोक कण्ठस्थ करवा कर आज्ञा दी कि नगर में जा कर इसका प्रचार करो। शिष्य उसी प्रकार करने लगे। राजा ने भी एक दिन यह श्लोक सुन लिया और विचारने लगा कि मन्त्री के षड्यन्त्र का मुझे कोई पता ही नहीं है। . . अगले दिन प्रात:काल सदा की भांति शकटार ने राजसभा में आ कर राजा को प्रणाम किया। परन्तु राजा ने मुंह फेर लिया। राजा का यह व्यवहार देख मन्त्री भयभीत हुआ और घर में आकर सारी बात अपने लड़के श्रीयंक से कही। वह बोला-"पुत्र ! राजा का कोप भयंकर होता है, कुपित राजा वंश का नाश कर सकता है। इसलिए हे पुत्र ! मेरा यह विचार है कि कल प्रात:काल जब मैं राजा को नमस्कार करने जाऊं और यदि राजा मुंह फेर ले तो तू तलवार से उसी समय मेरी गर्दन काट देना।" पुत्र ने उत्तर दिया-"पिता जी ! मैं ऐसा घातक और लोक निन्दनीय नीच कार्य कैसे कर सकता हूं?" मन्त्री बोला-"पुत्र ! मैं उस समय तालपुट नामक विष मुंह में डाल लूंगा। मेरी मृत्यु तो उससे होगी किन्तु तलवार मारने से राजा का कोप तुम्हारे ऊपर नहीं होगा। इससे अपने वंश की रक्षा होगी। श्रीयंक ने वंश की रक्षार्थ पिता की आज्ञा को मान लिया।
अगले दिन मन्त्री अपने पुत्र श्रीयंक के साथ राजसभा में राजा को प्रणाम करने के लिये गया। मन्त्री को देखते ही राजा ने मुंह फेर लिया और ज्यों ही प्रणाम करने के लिए मन्त्री ने सिर झुकाया, उसी समय श्रीयंक ने तलवार गर्दन पर मार दी। यह देख राजा ने श्रीयंक से पूछा-"अरे ! यह क्या कर दिया?" उत्तर में श्रीयंक ने कहा-"देव ! जो व्यक्ति आप को इष्ट नहीं, वह हमें कैसे अच्छा लग सकता है ?" श्रीयंक के उत्तर से राजा प्रसन्न हो गया
और श्रीयंक से कहा-"अब तुम मन्त्री पद को स्वीकार करो।" श्रीयंक ने कहा-"देव ! मैं मन्त्री नहीं बन सकता। क्योंकि मेरे से भड़ा भाई स्थूलभद्र है, जो बारह वर्ष से कोशा वेश्या
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