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________________ था। उसकी रानी पुष्पवती थी। राजा का एक लड़का और एक लड़की थी। लड़के का नाम था पुष्पचूल और लड़की का पुष्पचूला। भाई बहन का परस्पर अत्यन्त स्नेह था। दोनों के वयस्क होने पर माता का स्वर्गवास हो गया और वह देवलोक में पुष्पवती नामक देवी के रूप में उत्पन्न हो गयी। पुष्पवती ने देवी रूप में अपने पूर्वभव को अवधिज्ञान से देखा और अपने परिवार को भी। उस के मन में आया कि मेरी पुत्री पुष्पचूला आत्मकल्याण के पथ को भूल न जाये, इस लिए उसे प्रतिबोध देना चाहिये। यह विचार कर पुष्पवती देवी ने अपनी पूर्व भव की पुत्री पुष्पचूला को रात्रि में नरक और स्वर्ग के स्वप्न दिखलाये। स्वप्न देख कर पुष्पचूला को प्रतिबोध हो गया और उसने संसारी झंझट को छोड़ कर संयम ग्रहण कर लिया। तप, संयम, स्वाध्याय के साथ ही वह अन्य साध्वियों की वैयावृत्य में भी रस लेने लगी। शीघ्र ही घाती कर्मों का क्षयकर केवलज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त कर बहुत समय तक दीक्षापर्याय को पाल कर उसने निर्वाण प्राप्त किया। पुष्पचूला को प्रतिबोध देने का पुष्पवती देवी की पारिणामिकी बुद्धि का यह उदाहरण है। ५. उदितोदय-पुरिमतालपुर में उदितोदय नामक राजा राज्य करता था। श्रीकान्ता नामक उसकी रूप-यौवन सम्पन्न रानी थी। दोनों ही धर्मिष्ठ थे। अत: दोनों ने श्रावकवृत्ति धारण की हुई थी। इस प्रकार वे धर्म के अनुसार अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर रहे थे। . एक बार अन्तःपुर में एक परिवाजिका आयी और रानी जी को शुचि धर्म का उपदेश दिया। परन्तु रानी ने उस की ओर ध्यान न दिया। परिव्राजिका अपना अनादर समझ कर वहां से कुपित होकर चली गयी। उसने रानी से अपने अपमान का बदला लेने के लिये वाराणसी के राजा धर्मरुचि के पास श्रीकान्ता रानी की प्रशंसा की। धर्मरूचि राजा उसे प्राप्त करने के लिये पुरमितालपुर नगर पर अपनी सेना लेकर चढ़ आया तथा नगर को चारों ओर से घेर लिया। राजा उदितोदय ने विचारा कि यदि मैं युद्ध करता हूं तो व्यर्थ में सहस्रों निरपराधियों का वध होगा। ऐसा विचार कर राजा ने जनसंहार को रोकने के लिए वैश्रवण देव की आराधना के लिए अष्टम भक्त ग्रहण किया। अष्टमभक्त की परिसमाप्ति पर देव प्रकट हुआ। उसने अपनी भावना देव से प्रकट की और फलस्वरूप देव ने रातों-रात वैक्रिय शक्ति से सम्पूर्ण नगर को अन्य स्थान में संहरण कर दिया। वाराणसी के राजा ने जब अगले दिन देखा तो वहां साफ मैदान पाया और हताश होकर अपने नगर में वापिस लौट गया। राजा उदितोदय ने अपनी पारिणामिकी बुद्धि से अपनी और जनता की रक्षा की। ६. साधु और नन्दिषेण-नन्दिषेण राजगृह के राजा श्रेणिक का सुपुत्र था। यौवनावस्था को प्राप्त होने पर श्रेणिक ने अनेक कुमारियों से उसका पाणिग्रहण कराया। नवोढाएं रूप और सौन्दर्य में अप्सराओं को भी पराजित करती थीं। नन्दिषेण उन के साथ सांसारिक भोग भोगते हुए समय व्यतीत करने लगा। उसी समय श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। भगवान के पधारने का
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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