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२. सेठ - एक सेठ की स्त्री दुराचारिणी थी, इस दुःख से दुःखित हो कर उसने प्रव्रज्या ग्रहण करने की भावना प्रकट की और अपने पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप कर दीक्षित हो गया। संयमधारण के पश्चात् उसके पुत्र को जनता ने अपना राजा स्थापित कर दिया । पुत्र जिस समय राज्य कर रहा था, मुनि विहार करते-करते उसी नगर में आ गये। राजा की प्रार्थना पर मुनि जी ने चातुर्मास वहीं स्वीकार कर लिया । चातुर्मास में जनता मुनि जी के प्रवचन से अत्यधिक प्रभावित हुई। शासन की इस प्रकार प्रभावना को जैन शासन के विरोधी सह न सके और एक षड्यंत्र रचा। मुनि जब वर्षावास के पश्चात् विहार करने लगे तो द्वेषी एक गर्भवती दासी को ले कर आ गये। राजा और जनता के सामने पहले से शिक्षित दासी कहने लगी - " अरे मुनि ! यह गर्भ तुम्हारा है, तुम विहार करके ग्रामान्तर में जा रहे हो, मेरा पीछे से क्या बनेगा ? " ऐसा कहती हुई दासी से जब मुनिजी ने सुना तो वे विचारने लगे- “मैं तो सर्वथा निष्कलंक हूं। यदि विहार करके चला गया तो इससे धर्म की हानि और अपयश होगा, उसे निवारण के लिए मुनि तत्काल ही बोल उठे -"यदि यह गर्भ मेरा हो तो योनि से सम्यक्तया उत्पन्न हो, अन्यथा उदर को फाड़कर निकले।" दासी के गर्भ का समय चूंकि सम्पूर्ण हो चुका था। बच्चा पैदा नहीं हो रहा था । दासी को बहुत वेदना होने लगी। मुनि लब्धि सम्पन्न थे, इस कारण बच्चा पैदा न हुआ, दासी को मुनि जी की सेवा में ले जाया गया। उसने मुनि जी से क्षमा याचना की और कहा - "महाराज ! मैंने आपके प्रति जो शब्द कहे थे, वे द्वेषियों के कथनानुसार ही कहे थे, आप महान् हैं, दयालु हैं, मेरा अपराध क्षमा करें और मुझे विपत्ति से मुक्त करें । " मुनि क्षमा के सागर थे, तपस्वी थे, अतः उन्होंने दासी को क्षमा कर दिया और बच्चा पैदा हो गया। विरोधी निराश हो गये और मुनि के प्रभाव से धर्म का सुयश होने लगा। मुनि ने धर्म का अवर्णवाद न होने दिया और दासी की भी जान बचा ली। यह मुनि की पारिणामिकी बुद्धि है।
३. कुमार - एक राजकुमार बालकपन से ही मोदकप्रिय था । वयस्क होने पर उसका विवाह हो गया। एक समय कोई उत्सव आया । उत्सव पर राजकुमार ने अत्युत्तम और स्वादिष्ट मिष्ठान्न, पक्वान्न और मोदक आदि बनवाए। अपने संगी-साथियों के साथ वह अतीव गृद्ध होकर पर्याप्त मात्रा में मोदक आदि खा गया, जिसके परिणामस्वरूप उसे अजीर्ण हो गया। भोजन न पचने से उसके शरीर से दुर्गन्ध आने लगी और वह दुःखी हो गया। तब राजकुमार विचारने लगा -" अहो ! इतने सुन्दर और स्वादिष्ट भक्ष्य पदार्थ शरीर के संसर्ग मात्र से उच्छिष्ट और दुर्गन्धमय बन गये । अहो ! यह शरीर अशुचि पदार्थों से बना है, इसके सम्पर्क प्रत्येक वस्तु अशुचि बन जाती है। अतः धिक्कार है इस शरीर को, जिस के लिये मनुष्य पापाचरण करता है ।" इस प्रकार अशुचि भावना का अनुसरण करते हुए, उसके अध्यवसाय उत्तरोत्तर शुभ, शुभतर होते गये और अन्तर्मुहूर्त में उसे केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। इत्यादि अशुचि भावना आना राजकुमार की पारिणामिकी बुद्धि है।
४. देवी - पुराने समय की बात है। पुष्पभद्र नाम का एक नगर था। वहां का राजा पुष्पकेतु
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