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________________ अपना बचाव किया है, अन्य कोई ऐसी बात नहीं है।" यह सुन कर चण्डप्रद्योतन बहुत क्रोध में आ गया और उन्हें आज्ञा दी कि "जो अभय कुमार को पकड़ कर मेरे पास लाएगा, मैं उसे बहुत-सा इनाम दूंगा।" राजा चण्डप्रद्योतन की यह आज्ञा एक वेश्या ने सुनी और कपट-श्राविका बन कर राजगृह में गई। वहां जा कर रहने लगी। कुछ समय के बाद एक दिन उसने अभयकुमार को अपने यहां भोजने के लिए निमन्त्रित किया। श्राविका समझ कर अभयकुमार ने उसका निमन्त्रण स्वीकार कर लिया तथा भोजन का समय आने पर उसके घर पर चला गया। वेश्या ने भोजन में किसी मादक द्रव्य का प्रयोग कर रखा था, जिसे खाने के पश्चात् अभयकुमार मूर्छित हो गया। मूर्छित होते ही वेश्या उसे रथ पर बैठाकर उज्जयिनी ले गयी और राजा चण्डप्रद्योत की सेवा में उपस्थित कर दिया। अपने पास अभयकुमार को देख कर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे कहा-"अभयकुमार ! तूने मेरे साथ धोखा किया, किंतु मैंने भी किस चातुर्य से तुझे यहां मंगवा लिया।" अभयकुमार ने उत्तर दिया-"मौसाजी ! आप अभिमान क्यों करते हैं", यदि मैं उज्जयिनी के बाजार के बीचों-बीच आपके सिर पर जूते मारते हुए राजगृह ले जाऊं तब मुझे अभयकुमार समझना।" राजा ने अभयकुमार के इस कथन को उपहास में टाल दिया। कुछ दिन बार अभयकुमार ने राजा जैसे स्वर वाले किसी व्यक्ति की खोज की। जब ऐसा पुरुष मिल गया तो उसे अपने पास रखकर सारी बात उसे समझा दी। एक दिन अभयकुमार उस व्यक्ति को रथ पर बैठाकर उज्जयिनी के बाजार के बीचों-बीच उसके सिर पर जूते मारता हुआ निकला। वह व्यक्ति चिल्ला कर कहने लगा-अभयकुमार मुझे जूतों से पीट रहा है, मुझे छुड़ाओ ! मुझे बचाओ !! राजा जैसी आवाज सुनकर लोग उसे छुड़ाने को आए। लोगों के आते ही वह व्यक्ति और अभयकुमार खिल-खिला कर हंसने लगे। यह देखकर लोग स्वस्थान चले गए। - अभयकुमार लगातार पांच दिन तक इसी प्रकार करता रहा। लोग समझते कि अभयकुमार बाल-क्रीड़ा करता है, इस कारण उस व्यक्ति को छुड़ाने के लिए कोई भी नहीं आता। . एक दिन अवसर देखकर अभयकुमार ने चण्डप्रद्योतन को बान्ध लिया और अपनी कुशलता से रथ पर बैठाकर बाजार के बीच उसके सिर पर जूते मारता हुआ निकला। चण्डप्रद्योतन चिल्लाने लगा-"दौड़ो ! दौड़ो !! पकड़ो ! पकड़ो !! अभयकुमार मुझे जूते मारते हुए ले जा रहा है।" लोगों ने इसे भी प्रतिदिन की भांति बाल-क्रीड़ा ही समझा और कोई भी उसे छुड़ाने के लिए नहीं आया। अभयकुमार चण्डप्रद्योतन को बान्ध कर राजगृह ले आया। इस व्यवहार पर चण्डप्रद्योतन मन ही मन में बहुत लज्जित हुआ। राजा श्रेणिक की सभा में उसे ले जाया गया और श्रेणिक के पांव में पड़कर अपने किए अपराध के लिए चण्डप्रद्योतन ने क्षमा मांगी। राजा श्रेणिक ने उसे सम्मान पूर्वक वापिस उज्जयिनी में पहुंचाया और वहां पर वह अपना राज्य करने लगा। चण्डप्रद्योतन को इस प्रकार पकड़ कर लाना यह अभयकुमार की पारिणामिकी बुद्धि थी। *3333
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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