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पुण्यहीन किसान के पास जाकर बैल मांगने लगा। लेकिन वह कहां से देता। तब मित्र उसे राजकुल में ले चला।
जब दोनों रास्ते में जा रहे थे, सामने से एक घुड़सवार आता दिखाई दिया। घोड़ा उनको देख कर बिदक गया और सवार को गिरा कर भागने लगा। तब सवार ने कहा-"घोड़े को डण्डे से मार कर रोकं दो।" अकृतपुण्य ने यह सुना और डण्डा इस प्रकार जोर से मारा कि घोड़े के मर्मस्थल पर लगा और उसी समय घोड़ा मर गया। यह देख घोड़े के स्वामी ने उसको पकड़ लिया और वह भी राजकुल में ले चला।
जब वे तीनों नगर के पास आए तो राजसभा समाप्त हो चुकी थी और सूर्य भी अस्त हो गया था तथा नगर के द्वार भी बन्द हो गये थे। उन्होंने विचारा कि अब अन्दर नहीं जा सकते, इसलिए नगर के बाहर ही रात को विश्राम करके प्रातः राजसभा में जायेंगे। नगर के बाहर एक वृक्ष के नीचे बहुत से नट भी सो रहे थे, वहीं वे भी सो गये। अकृतपुण्य सोचने लगा कि मरे बिना इन विपत्तियों से छुटकारा नहीं होगा, अतः गले में फंदा डाल कर मर जाना चाहिए। ऐसा सोचकर अपने गले में फंदा डाल कर वृक्ष पर लटकने लगा। जैसे ही गले में फंदा डाला तो जीर्णवस्त्र होने से वह फंदा टूट गया और पुण्यहीन नटों के सरदार पर जा गिरा
और गिरने से सरदार की मृत्यु हो गई। नटों ने भी उसे पकड़ लिया और सभी इकट्ठे हो कर प्रात: राज्यसभा में चले गये।
राजा के पास जा कर सभी ने अपना अभियोग सुनाया। तब राजा ने उस बेचारे पुण्यहीन से पूछा। उसने भी निराश और हताश हो कर कहा-"देव ! जो कुछ ये कहते हैं, वह सब सत्य है।" यह सुन कर राजा को उस दीन पर दया आई और कहने लगा-"भाई ! यह तेरे बैलों को दे देगा, परन्तु पहले तेरी आंखों को निकालेगा। क्योंकि यह तो उसी समय उऋण हो गया था, जब तुमने अपनी आंखों से बाड़े में छोड़ते हुए बैलों को देखा था। यदि तुम अपनी आंखों से बैलों को न देखते तो यह भी घर न जाता। क्योंकि जो, जिसके पास कोई वस्तु समर्पण करने जाता है, वह बिना संभाले नहीं जाता। तुमने उस समय दोनों बैलों को बाड़े में आते देख लिया था। अतः इसका कोई दोष नहीं है।" तब राजा ने घोड़े के स्वामी को भी बुलाया और कहा-"यह तुम्हें घोड़ा दे देगा। परन्तु पहले यह तुम्हारी जिह्वा को काट लेगा। क्योंकि जब तुम्हारी जिह्वा ने दण्ड से मारने के लिए कहा, तभी इसने तदनुसार किया, अपने-आप नहीं। यह कहां का न्याय है कि तुम्हारी जिह्वा तो बच जाए और इस दीन को दण्ड दिया जाए। इसलिए यहां से चले जाओ।" तत्पश्चात् राजा ने नटों को बुलाया और कहा-"इस गरीब के पास क्या है, जो तुम्हें दिलाया जाये? हां, इतना कर सकते हैं कि इस व्यक्ति को वृक्ष के नीचे सुला देते हैं, और जिस प्रकार गले में इसने फंदा डाला था, उसी प्रकार तुम्हारा मुख्य नेता गले में पाश डालकर इसके ऊपर गिर पड़े।" यह निर्णय सुन सबने उस पुण्यहीन पुरुष को छोड़ दिया। यह राजा की विनयजा बुद्धि का उदाहरण है।
उपरोक्त सभी उदाहरण विनय से उत्पन्न बुद्धि के हैं। .
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