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३. कर्मजा बुद्धि का लक्षण
मूलम् - १. उवओग-दिट्ठसारा, कम्म - पसंग - परिघोलण-विसाला । साहुक्कार फलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ ७६ ॥ छाया-१. उपयोग-दृष्टसारा, कर्म-प्रसंग- परिघोलन - विशाला । साधुकारफलवती, कर्मसमुत्था भवति बुद्धिः ॥ ७६ ॥
पदार्थ - उवओग- उपयोग से, दिट्ठसारा - परिणाम को देखने वाली, कम्म-पसंग - कार्य के अभ्यास से, परिघोलण - चिन्तन से, विसाल- विशाला, साहुक्कार - साधुवाद, फलवईफलवाली, कम्म - समुत्था - कर्म से उत्पन्न, बुद्धी - बुद्धि - कर्मजा, हवइ - होती है।
भावार्थ - उपयोग पूर्वक चिन्तन-मनन से कार्यों के लिए परिणाम को देखने वाली, तथा अभ्यास और विचारने से विशाल एवं विद्वज्जनों से साधुवाद रूप फलवाली, तरह कार्य के अभ्यास से समुत्पन्न बुद्धि कर्मजा होती है।
इस
३. कर्मजा बुद्धि के उदाहरण
मूलम् - २. हेरणिए करिसय कोलिय, डोवे य मुत्ति घय पवए । तुन्नाय वड्ढइ य, पूयइ घड चित्तकारे य ॥ ७७ ॥
छाया - २ हैरण्यकः कर्षकः कौलिकः, डोवः (दर्वीकारश्च ) मौक्तिकघृत-प्लवकः । तुन्नागो वर्द्धिकश्च आपूपिकः घट - चित्रकारौ च ॥ ७७ ॥ १. हैरण्यक - (स्वर्णकार ) - सुनार अपने कार्य के विज्ञान से अन्धकार में भी हाथ के स्पर्श मात्र से सुवर्ण, रुप्यक आदि की भलीभांति परीक्षा कर लेता है।
२. कर्षक- किसान-कोई तस्कर चोरी करने गया, उसने वणिक के घर में सेंध इस ढंग से लगायी की दीवार में पद्म-कमल की आकृति बन गयी। लोगों ने जब प्रातः उठकर सेंध के स्थल को देखा तो वे चोर की चतुरता की प्रशंसा करने लगे। चोर भी छिप कर वहां जनसमूह में आ खड़ा हुआ और अपनी प्रशंसा लोगों से सुनने लगा। उसी जन समुदाय में एक किसान भी था, वह चोर की प्रशंसा सुन कर कहने लगा-" इसमें प्रशंसा या आश्चर्य की क्या बात है, जिसका जिस विषय में अभ्यास है, उसके लिए वह विषय कोई दुष्कर नहीं है।" चोर कृषक के इस वाक्य को सुनकर क्रोधाग्नि से जल उठा, तब चोर ने किसी से पूछा - " यह कौन है ? और कहां रहता है?" चोर सब बातें पूछने के पश्चात् एक दिन तेजधार की छुरी लेकर खेत में पहुंच गया और कहने लगा-" अरे ! मैं तुझे अभी समाप्त करता हूं।" किसान ने कारण पूछा। चोर के कहा - " तूने उस दिन मेरी खोदी हुई सेंध की प्रशंसा नहीं की थी, इस कारण । " कृषक फिर बोला - "हां, यह सत्य है, जो व्यक्ति जिस कर्म या
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