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________________ ने बहुत बड़े डील-डौल के बड़े मोटे-ताजे घोड़े खरीद लिए । परन्तु घोड़ों की परीक्षा में प्रवीण वासुदेव ने एक दुबले-पतले घोड़े का सौदा किया। जब घुड़सवारी का समय आता तो बड़े आकार प्रकार के घोड़े पीछे रह जाते और वासुदेव का दुबला-पतला घोड़ा सबसे आगे निकल जाता। यह वासुदेव की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है। ७. गर्दभ-एक राजा जब यौवनावस्था को प्राप्त हुआ, तो उसके मस्तिष्क में यह धुन सवार हो गई कि " तरुण ही सब कार्यों में कुशल हो सकते हैं और तरुणावस्था ही सर्वश्रेष्ठ होती है। यह विचार कर राजा ने अपनी सेना से सभी अनुभवी और वयोवृद्ध योद्धाओं को निकाल, उनके स्थान पर युवा लड़कों की सेना में भरती कर ली। एक बार राजा किसी देश पर चढ़ाई करने जा रहा था। मार्ग में एक बीहड़ अटवी में मार्ग भूल जाने से सभी युवा सैनिक और कर्मचारियों समेत राजा पानी के अभाव में प्यास से व्याकुल हो गये। तब किंकर्त्तव्यविमूढ़ राजा से किसी ने प्रार्थना की "महाराज ! यह विपत्तिसागर किसी वृद्ध पुरुष की बुद्धि के बिना पार नहीं किया जा सकता, इसलिए किसी वृद्ध पुरुष की खोज की जाए।'' उसी समय राजा ने समस्त सैन्यदल में उद्घोषणा करवाई। यह घोषणा एक पितृभक्त सैनिक ने सुनी, जो अपने अनुभवी वृद्ध पिता को गुप्त वेष में साथ ले आया था। युवा सैनिक घोषणा सुन कर राजा से कहा - " महाराज । मेरे पिता जी यहां उपस्थित हैं।" राजाज्ञा से वृद्ध को राजा के पास ले जाया गया। राजा ने विनयपूर्वक पूछा - " महापुरुष ! मेरी सेना को पानी कैसे मिलेगा?" वृद्ध बोला - "देव ! गधों को स्वतन्त्र रूप से छोड़ दीजिये, जहां पर वे भूमि को सूंघें, उसी स्थान पर पानी समझ लेना चाहिए। " राजा ने उसी प्रकार किया और पानी प्राप्त · कर सभी सैनिक स्वस्थ हो, अपने गन्तव्य की ओर चल पड़े। यह स्थविरपुरुष की वैनयिकी बुद्धि है। ८. लक्षण - घोड़ों के एक व्यापारी ने घोड़ों की रक्षा के लिये एक व्यक्ति को नियुक्त किया और उससे कहा कि- "वेतन में तुम्हें घोड़े मिलेंगे।" सेवक ने यह स्वीकार कर लिया। घोड़ों की रक्षा करते हुए घोड़ों के स्वामी की कन्या से उसका स्नेह हो गया। सेवक ने कन्या से पूछा- कौन से घोड़े अच्छे हैं ?" लड़की ने उत्तर दिया- यूं तो सभी घोड़े अच्छे हैं, परन्तु पत्थरों से भरे कुप्पे को वृक्ष पर से गिराने के शब्द से जो घोड़े भयभीत न हों, वही श्रेष्ठ हैं।" सेवक ने उसी प्रकार सभी घोड़ों की परीक्षा की। उनमें दो घोड़े जो लक्षण सम्पन्न थे, वे परीक्षण में निर्भय निकले। जब वेतन देने का समय आया, तब उसने कहा- "मुझे ' अमुक. दो घोड़े दे दीजिये । " अश्वस्वामी ने कहा- " अरे भाई ! इन दोनों का क्या करेगा?" और जो मनोज्ञ हैं, ले ले। परन्तु वह नहीं माना। तत्पश्चात् अश्वस्वामी ने अपनी स्त्री से कहा–‘“यह सेवक वेतन में अमुक घोड़े मांगता है। अत: इसे गृहजामाता बना लेते हैं, नहीं तो यह इन जातिसम्पन्न श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त घोड़ों को वेतन में ले जायेगा । " किन्तु उसकी स्त्री नहीं मानी। तब स्वामी ने उसे समझाया कि इन घोड़ों के रहते हुए और भी गुणयुक्त घोड़े हो जायेंगे और अपने परिवार में भी सभी प्रकार से उन्नति होगी, अन्यथा घोड़े चले जाने से सभी प्रकार से हानि होगी । यह सुन कर वह मान गई और अश्वरक्षक से अपनी कन्या का *325
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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