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________________ के धुएं को अन्दर ही अन्दर धारण किये, पत्थर के स्तंभ की तरह खड़ा रहा। तब गुरु ने अविनीत को कहा-"अरे ! तू नमस्कार क्यों नहीं करता?" वह बोला-"महाराज ! आपने जिसको सम्यक् प्रकार से पढ़ाया है, वही आपके चरणों में पड़ेगा, मैं नहीं।" गुरु ने उत्तर दिया-क्या तुझे सम्यक्तया नहीं पढ़ाया ?" तब उसने पूर्वोक्त सारा वृत्तान्त गुरु से कह दिया, यावत् इसका ज्ञान सत्य है और मेरा असत्य। पुनः गुरु ने विनयी से पूछा-"वत्स ! कहो, तुमने यह सब कैसे जाना?" तब विनयी शिष्य ने कहा-"मैंने आपके चरणों के प्रताप से विचार किया कि-यह तो भलीभान्ति ज्ञात है कि ये हाथी रूप के पैर हैं; विशेष विचार किया कि हाथी के पैर हैं या हथिनी के? पुनः पेशाब को देख कर जाना कि ये पांव हस्तिनी के हैं। मार्ग के दक्षिण पार्श्व में बाड़ के लिये लगाये गये बल्ली और पत्र आदि खाए हुए थे, इससे निश्चय किया कि वह हस्तिनी वाम नेत्र से काणी है। अन्य कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता जो इस प्रकार जन समूह के साथ हाथी पर आरूढ़ होकर जाये। तब यह निश्चय किया कि अवश्य ही यह कोई राजकीय व्यक्ति है और उसने हस्तिनी से उतर कर लघुशंका की है। लघुशंका से निश्चय किया कि यह रानी हो सकती है। वृक्ष के साथ लगे हुये रक्तवस्त्र के तन्तुओं से ज्ञात किया कि वह सधवा है। दक्षिण हाथ भूमि पर रख कर खड़ी हुई है, इससे जाना कि वह गर्भवती है। दक्षिण चरण अधिक भारी होने से जाना कि आज कल में प्रसव होगा। इन सब निमित्तों से मैं समझ गया कि उसके लड़का उत्पन्न होगा।" वृद्धा स्त्री के प्रश्न के तत्काल ही घट के गिरने से विचार किया कि-यह घट जहां से उत्पन्न हुआ है, उसी में मिल गया। इससे मैंने जान लिया कि बुढ़िया का पुत्र घर आ गया है।" ऐसा कहने के अनन्तर गुरु ने विनयी शिष्य को स्नेहमयी दृष्टि से देखते हुए प्रशंसा की। द्वितीय शिष्य से कहा कि- “यह तेरा दोष है, तू न तो विचार कर काम करता है और न मेरी आज्ञा का ही पालन करता है। हमारा अधिकार तो तुम्हें शास्त्र का अध्ययन कराने का है, विमर्श तो तुमने ही करना है।" यह विनय से उत्पन्न शिष्य की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण २. अत्थसत्थे-अर्थशास्त्र पर कल्पक मन्त्री का उदाहरण है, जो कि टीकाकार ने नाम मात्र से संकेतित किया है। अतः इसका विवरण उपलब्ध नहीं हो सका। .. ३. लेख-लिपि का परिज्ञान-यह भी विनयवान् शिष्य को ही होता है। ४. गणित-गणित में प्रवीणता भी वैनयिकी बुद्धि का चमत्कार है। ५. कूप- किसी ग्रामीण ने एक भूवेत्ता से पूछा कि- "अमुक स्थल पर कितनी दूरी पर पानी निकलेगा?" भूवेत्ता ने कहा कि-"अमुक परिमाण में भूमि को खोदो।" ग्रामीण ने उसी प्रकार खोदकर कहा-"यहां पानी नहीं निकला।" तब भूमि के परीक्षक ने कहा-"पार्श्व भूभाग पर एड़ी से प्रहार करो।" एड़ी से ताड़ित करने पर तत्काल ही जल निकल आया। यह भूगर्भवेत्ता पुरुष की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है। ६. अश्व-(घोड़ा)-बहुत से व्यापारी द्वारिकापुरी में घोड़े बेचने गये। नगरी के राजकुमारों * 324 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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