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________________ यह जान लेने के पश्चात् शिक्षक ने ग्रामान्तर में रहने वाले अपने बन्धुओं को किसी प्रकार सूचना भेजी कि "मैं अमुक रात्रि को नदी में गोबर के पिण्ड प्रवाहित करूंगा, आप उन्हें पकड़ लेना।” उन्होंने भी इस बात को स्वीकार करके उत्तर भेज दिया। इसके अनन्तर धनुर्विद्या के शिक्षक ने द्रव्य से मिश्रित गोबर के पिंड बनाये और उन्हें धूप में अच्छी तरह से सुखा लिया। तत्पश्चात् धनिकों के पुत्रों से कहा- "हमारे कुल में यह परम्परा है कि जिस समय शिक्षा का कार्यक्रम पूर्ण हो जाये, उसके अनन्तर अमुक तिथि व पर्व में स्नान करके. मन्त्रों के उच्चारण पूर्वक रात्रि में गोबर के सूखे पिण्ड नदी में प्रवाहित किये जाते हैं।" अतः अमुक रात्रि में ऐसा कार्यक्रम होगा। उन कुमारों ने अपने गुरु की इस बात को स्वीकार कर लिया। तब निश्चित रात्रि में उन कुमारों के साथ उसने स्नानपूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए सभी गोबर के पिण्ड नदी में विसर्जित कर दिये और घर वापिस लौट आये तथा वे पिण्ड उस के बन्धुओं ने प्राप्त कर लिए और अपने ग्राम में ले गये। कुछ दिन बीतने पर धनिकों के पुत्रों व उनके सगे-सम्बन्धियों से विदाई लेकर केवल वस्त्र मात्र पहिन कर अपने आप को सबके समक्ष दिखला कर कलाचार्य वहां से चल दिया। लड़कों के अभिभावकों ने समझ लिया कि इसके पास कुछ नहीं है, इस कारण उसे लूटने और मारने का विचार छोड़ दिया और वह कुशलतापूर्वक अपने ग्राम में वापिस पहुंच गया। यह कलाचार्य की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। २५. अर्थशास्त्र- नीतिशास्त्र - एक वणिक था, उसकी दो पत्नियां थीं। एक के पुत्र था और दूसरी वन्ध्या थी । परन्तु पुत्र का दोनों ही विशेष ममत्व पूर्वक लालन-पालन करती थीं और लड़के को यह ज्ञान नहीं होता था कि मेरी जननी कौन सी है। एक बार वह बनिया अपनी दोनों पत्नियों और पुत्र के साथ भगवान सुमतिनाथ की जन्म भूमि में पहुंच गया। वहां पहुंचने के पीछे अकस्मात् उस वणिक का देहान्त हो गया। उसके मरने के पीछे दोनों पत्नियों में पुत्र और गृहसम्पत्ति के लिये झगड़ा आरम्भ हो गया। दोनों ही पुत्र पर अपना अधिकार बताने से घर की स्वामिनी बनना चाहती थीं, यह कलह राज दरबार में गया । परन्तु फिर भी निर्णय न हो सका। इस विवाद को भगवान सुमतिनाथ की गर्भवती माता ने सुन लिया। माता सुमंगला ने दोनों सपत्नियों को अपने पास बुलाया। माता सुमंगला ने कहा- "कुछ दिनों के पश्चात् मेरे यहां पुत्र का जन्म होगा। वह बड़ा होगा और इस अशोक वृक्ष के नीचे बैठकर तुम्हारा झगड़ा निपटायेगा, तब तक तुम यहां पर रहो और निर्विशेषता से खाओ पीयो और सुखपूर्वक निवास करो।" यह सुनकर जिसका पुत्र नहीं था वह सोचने लगी- "चलो, इतने समय तक तो यहां रह कर आनन्द लो, पीछे जो होगा, देखा जायेगा ।" वन्ध्या ने सुमगंला देवी की इस बात को स्वीकार कर लिया। इस से रानीजी ने जान लिया कि बच्चे की माता यह नहीं है और उसे वहां से तिरस्कृत कर निकाल दिया और बच्चा उसकी माता को देकर गृहस्वामिनी भी उसे ही बना दिया । यह माता सुमंगला की अर्थशास्त्र विषयक औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। 320
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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