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________________ सारी कार्रवाई इसी की है। उसने अपने भावों को छिपाते हुये मायावी मित्र को शान्त्वना देते हुए कहा-“मित्र ! क्यों रोते हो, इस प्रकार खेद और दुःख प्रकट करने से निधान वापिस थोड़े ही आयेगा?" इस प्रकार वे वहां से अपने-अपने घर पर वापिस चले आए। सरल स्वभावी मित्र ने इस बात का बदला लेने के लिये मायावी मित्र की सजीव जैसी प्रतिकृति बनवायी और दो बन्दर पाल लिये। वह प्रतिमा के हाथों, जंघा, शिर, पैर आदि पर बन्दरों के खाने योग्य वस्तु रख देता। बन्दर प्रतिमा के साथ खेलते और उस पर रखे हुए पदार्थों को खाते यह नित्य प्रति का काम हो गया। इस प्रकार बन्दर प्रतिमा से परिचित हो गये और बिना पदार्थों के भी उस से खेलते रहते। - तत्पश्चात् एक पर्व दिन पर उस सरल मित्र ने मायावी मित्र के घर जाकर कहा कि-"आज अमुक पर्व है, हमने खाना बना रखा है। आप अपने दोनों पुत्रों को मेरे साथ भेज दीजिए। भोजन के समय दोनों पुत्र वहां पर आ गये। बड़े आदर से उनको भोजन कराया और पीछे दोनों को सुखपूर्वक किसी स्थान पर छिपा कर रख छोड़ा। जब थोड़ा सा दिन शेष रहा, तब मायावी अपने बच्चों को बुलाने के लिए आया। मित्र के आने का समाचार जान कर सरल स्वभावी मित्र ने प्रतिमा को वहां से उठा दिया और आसन बिछा कर मायावी को वहां सम्मान पूर्वक बैठा कर कहने लगा-"मित्र आपके दोनों लड़के बन्दर हो गये हैं। मुझे इस बात का बहुत खेद है। इस प्रकार वार्तालाप करते हुए उसने बन्दरों को छोड़ दिया। वे किलकिलाहट करते हुए पूर्वाभ्यास के कारण उस मायावी पर आ चढ़े। कभी सिर पर, कभी कन्धों पर चढ़कर उस से प्यार करने लगे। तब सरल मित्र ने मायावी से कहा-"मित्र ! ये आप के दोनों पुत्र हैं, इसीलिए आप से प्यार करते हैं।" मायावी यह देख कर कहने लगा"क्या कभी मनुष्य भी बन्दर हो सकते हैं ?" सरल मित्र बोला "यह आप के कर्मों के अनुसार ऐसा हो गया है, तथा सुवर्ण भी कोयला बन सकता है तो क्या बच्चे बन्दर नहीं बन सकते ? हमारे दुर्भाग्य से जैसे सोना कोयला बन गया, वैसे ही बच्चे भी बन्दर बन गए हैं। तब मायावी सोचने लगा "इसे मेरी चालाकी का पता लग गया है, यदि मैं शोर मचाऊंगा तो कहीं राजा को पत्ता लग जाने से वह मुझे पकड़ लेगा, मेरे पुत्र भी मनुष्य न बन सकेंगे।" यह सोचकर मायावी ने यथातथ्य सारी घटना मित्र से कह दी और उस को आधा भाग धन का दे दिया। सरल मित्र ने भी उसके पुत्रों को बुलाकर उसके समर्पित कर दिया। यह सरल मित्र की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। ... २४. शिक्षा-धनुर्वेद-कोई पुरुष धनुर्विद्या में अत्यन्त कुशल था। वह एक बार भ्रमण करता हुआ किसी समृद्ध नगर में पहुंचा और वहां के धनिक व्यक्तियों के लड़कों को एकत्र करके उन्हें धनुर्विद्या सिखाने लगा। उन धनुर्विद्या आदि सीखने वाले विद्यार्थियों ने अपने कलाचार्य को शिक्षा के बदले में बहुत धन आदि उपहार स्वरूप भेंट किया। जब लड़कों के अभिभावकों को यह ज्ञान हुआ कि लड़कों ने इस शिक्षक को बहुत द्रव्य दिया है, तो वे बहुत चिन्तित हुए। उन्होंने निर्णय किया, जब यह द्रव्य लेकर अपने घर जायेगा, तब इसे मार कर सारा धन वापिस ले लेंगे। उनके इस निर्णय का उस शिक्षक को भी किसी प्रकार पता लग गया। *3193
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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