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________________ ने दोनों के बयान लिये। तब न्यायाधीश ने थैली के मालिक से पूछा-"तुम ने किस वर्ष थैली धरोहर में रखी थी?" उस ने वर्ष, दिन आदि बताये। न्यायाधीश ने उन मोहरों को देखा तो वे नई ही बनी हुई थीं। न्यायाधीश ने समझ लिया कि ये मोहरें नकली हैं। यह निश्चय कर सेठ से असली मोहरें उसे दिला दीं और सेठ को यथोचित दण्ड दिया। यह न्यायकर्ता की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। २२. भिक्षु-किसी व्यक्ति ने एक संन्यासी के पास एक हजार सोने की मोहरें धरोहर में रखीं और स्वयं विदेश में चला गया। कुछ समय के पश्चात् वह लौट कर घर आया और संन्यासी से मोहरें मांगीं। परन्तु वह टाल-मटोल करने लगा और आज-कल करके समय निकालने लगा। वह व्यक्ति उसके इस व्यवहार से दुःखी हो गया, क्योंकि वह उसे उसकी धरोहर नहीं दे रहा था। एक दिन उस व्यक्ति को कुछ जुआरी मिल गये। उसने उन से अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया। जुआरियों ने कहा-"कि हम तुम्हारी धरोहर दिला देंगे और उससे संकेत कर के चले गये। उसके बाद्न जुआरी गेरुएं रंग के कपड़े पहन कर संन्यासियों का वेष धारण कर हाथ में सोने की खूटियां लेकर चले और भिक्षु के पास पहुंच कर उन्होंने कहा-"हम विदेश में परिभ्रमण के लिये जा रहे हैं हमारे पास ये सोने की खूटियां हैं, आप इन्हें अपने पास रख लें, क्योंकि आप बड़े सत्यवादी महात्मा हैं।" उसी समय वह धरोहर वाला व्यक्ति भी पूर्व संकेतानुसार वहां आ गया और महात्मा से बोला-"महात्मा जी ! वह हजार मोहरों की थैली मुझे वापिस दे दीजिए।" महात्मा उन आगंतुक वेषधारी संन्यासियों के सामने खूटियों के लोभवश तथा अपने अपयश के भय से इन्कार नहीं कर सका और हजार मोहरें लौटा दीं। वह अपनी थैली लेकर चलता बना। पीछे से संन्यासी भी कार्यवश भ्रमण करने के कार्यक्रम को स्थगित करने के बहाने अपने घर वापिस लौट गये। भिक्षु अपने किये पर पश्चात्ताप करने लगा। यह जुआरियों की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। २३. चेटक-निधान-दो व्यक्ति परस्पर घनिष्ट मित्र थे। उनमें एक सरल स्वभाव का था तथा दूसरा मायावी और धूर्त था। किसी समय वे दोनों बाहर जंगल प्रदेश में गये हुए थे। वहां उन्हें एक गड़ा हुआ निधान उपलब्ध हो गया। तब उन में से जो मायावी था उसने मित्र से कहा-"मित्र ! हम इस निधान को कल शुभ दिन और नक्षत्र में यहां से ले जायेंगे।" दूसरे मित्र ने सरल स्वभाव के कारण उसकी बात को स्वीकार कर लिया और दोनों अपने घर पर लौट आये। घर लौटकर मायावी मित्र उसी रात्रि में उस निधान के पास वापिस गया, वहां से सारा धन निकाल कर उस स्थान पर कोयले भर कर अपने घर चला आया। दूसरे दिन वे दोनों मित्र पूर्व निश्चयानुसार निधान की जगह पर गये। वहां जाकर उन्हें धन के स्थान पर कोयले मिले। यह देख कर मायावी सिर और छाती पीट कर रोने लगा और कहने लगा-"हाय ! हम कितने भाग्यहीन हैं, कि दैव ने आखें देकर हम से छीन लीं, जो हमें निधान दिखा कर कोयले दिखाये। इस प्रकार बार-बार कहता और दूसरे मित्र से अपने कपट को छिपाने के लिए उसकी ओर देखता भी जाता। यह दृश्य देख कर सरल मित्र को ज्ञात हो गया कि यह *318*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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