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________________ पुरुष असमञ्जस में पड़ गया कि क्या करूं ? दोनों स्त्रियां परस्पर विवाद करने लग पड़ीं और दोनों अपने को उस पुरुष की पत्नी कहने लगीं। पुरुष ने रोती आ रही स्त्री के कहने पर रथ को जरा शनैःशनै रोकना आरम्भ किया। इस प्रकार दोनों स्त्रियां लड़ती हुई अगले ग्राम के पास पहुंच गईं। पुरुष और दोनों स्त्रियों के कहने पर न्याय करने वाले ने अपनी बुद्धि से काम लिया। दोनों स्त्रियों को पृथक्-पृथक् कर पुरुष को दूर स्थान पर बैठा दिया और कहा - " जो स्त्री पहले पुरुष को जा कर छू लेगी, वह उसी का पति है।" स्त्री तो भाग कर पुरुष के पास पहुंचने का प्रयत्न कर रही थी। परन्तु व्यन्तरी ने वैक्रिय शक्ति से अपने हाथ को लम्बा करके वहां से ही छू लिया। तब न्याय करने वालों ने समझ लिया कि अमुक स्त्री है और अमुक व्यन्तरी । इस प्रकार न्यायाधीश ने पति के पास उसकी स्त्री को सौंप दिया और व्यन्तरी को वहां से भगा दिया। यह न्यायकर्त्ता की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। १५. स्त्री - एक समय मूलदेव और पुण्डरीक दोनों मित्र कहीं जा रहे थे। उसी मार्ग से एक पुरुष अपनी स्त्री के साथ कहीं पर जा रहा था । पुण्डरीक ने दूर से ही पुरुष के साथ जाती हुई स्त्री को देखा और वह उस पर मुग्ध हो गया। पुण्डरीक ने अपनी दुर्भावना को अपने मित्र मूलदेव के समक्ष प्रकट किया और कहा-"यदि यह स्त्री मुझे मिल जाए तो मैं जीवित रहूंगा अन्यथा मेरी मृत्यु हो जायेगी।" तब कामासक्त पुण्डरीक को मूलदेव ने कहा- " आतुर मत हो, मैं ऐसा करूंगा कि तुझे स्त्री मिल जाए ।" 44 44 वे दोनों मित्र उक्त स्त्री और पुरुष से अलक्षित शीघ्र ही अन्य मार्ग से होकर उसी रास्ते पर आगे पहुंच गए जिस पर स्त्री-पुरुष दोनों जा रहे थे । मूलदेव ने पुण्डरीक को मार्ग से दूर एक वनकुञ्ज में बैठा दिया और स्वयं दम्पति का मार्ग रोक उस पुरुष से कहने लगा-' ओ महाभाग ! मेरी स्त्री के इस पास की झाड़ी में बच्चा पैदा हुआ है, इसलिए उसे देखने के लिए अपनी स्त्री को क्षणमात्र के लिए वहां भेज दीजिए । " अपनी स्त्री को उसने भेज दिया और वह पुण्डरीक के पास चली गई । वह क्षण मात्र वहां ठहर कर वापिस लौट आई। आकर मूलदेव का वस्त्र पकड़ कर हंसती हुई कहने लगी- " आपको मुबारिकवाद ! बहुत सुन्दर बच्चा पैदा हुआ है।'' यह मूलदेव और स्त्री की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। १६. पति-दो भाइयों की एक सम्मिलित पत्नी थी। लोगों में इस बात की बड़ी चर्चा थी-कि इस स्त्री का अपने दोनों पतियों पर समान राग है। यह बात बढ़ते-बढ़ते राजा तक भी जा पहुंची। राजा भी यह बात सुन कर बड़ा विस्मित हुआ । तब मन्त्री ने कहा - "देव ! ऐसा कदापि नहीं हो सकता। इसका एक पर अवश्य ही विशेष अनुराग होगा । " राजा ने पूछा - " यह कैसे जाना जाए? " मन्त्री ने उत्तर दिया- "महाराज ! मैं ऐसा उपाय करूंगा, जिससे शीघ्र यह जाना जा सके कि किस में अधिक राग भाव है?" 44 एक दिन मन्त्री ने उस स्त्री के पास एक सन्देश लिखकर भेजा कि- 'वह अपने दोनों पतियों को पूर्व और पश्चिम दिशा में अमुक-अमुक ग्रामों में भेजे और उसी दिन वे सायंकाल 314
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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