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ओर घूम गया। ऐसा करने पर खम्भा बीच में बन्ध गया । राजपुरुषों ने यह समाचार राजा को दिया। राजा उसकी बुद्धिमत्ता पर हर्षित हुआ और उस पुरुष को एक लाख रुपया इनाम देकर अपना मन्त्री स्थापित कर दिया। यह उस व्यक्ति की औत्पत्तिकी बुद्धि पर खंभ का उदाहरण
है।
१३. क्षुल्लक - बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक परिव्राजिका रहा करती थी। वह बड़ी चतुर और कला-कौशल में निपुण थी। एक बार वह राजसभा में गई और राजा से कहा-‘“महाराज ! ऐसा कोई कार्य नहीं जो अन्य करते हों और मैं न कर सकूं।" राजा परिव्राजिका की बात को सुना और नगर में इस प्रकार की घोषणा करवा दी कि यदि कोई पुरुष ऐसा हो जो उसे जीत ले, तो वह राजसभा में आए, महाराज उसे सम्मानित करेंगे।
यह घोषणा नगर में भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए किसी नवयुवक क्षुल्लक ने सुनी और वह राजसभा में गया। महाराज से कहा - " मैं इस परिव्राजिका को अवश्य परास्त कर सकता हूं।" प्रतियोगिता का समय निश्चित कर दिया गया और परिव्राजिका को सूचना दे दी गई।
निश्चित समय पर राजसभा में साधारण जनता और राज्याधिकारियों के उपस्थित हो जाने पर परिव्राजिका और क्षुल्लक दोनों आ गये । परिव्राजिका अवज्ञापूर्ण और अभिमान युक्त मुंह बनाती हुई उपस्थित जनता के समक्ष बोली - "मुझे इस मुंडित से किस प्रकार की प्रतियोगिता करनी है?" परिव्राजिका की धूर्तता को समझता हुआ क्षुल्लक बोला - " जो मैं करूं वह तुम भी करती जाओ" इतना कहकर उसने अपना परिधान उतार फेंका और . बिल्कुल नग्न हो गया। परिव्राजिका ऐसा करने में असमर्थ थी । दूसरी प्रतियोगिता में क्षुल्लक
लघुशंका इस प्रकार से की कि उससे कमल की आकृति बन गई । परिव्राजिका यह भी न कर सकी। जनता और राजसभा में तिरस्कृत और लज्जित हो कर परिव्राजिका अपना-सा मुंह लेकर चलती बनी । क्षुल्लक को राजा ने सम्मान पूर्वक विदा किया। यह क्षुल्लक की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
१४. मार्ग-बहुत समय की बात है, एक पुरुष स्त्री के साथ रथ में बैठकर किसी अन्य ग्राम को जा रहा था। बहुत दूर निकल जाने पर मार्ग में स्त्री को शौच की बाधा हुई। रथ को ठहरा कर स्त्री पुरुष की आंखों से ओझल हो कर शरीरचिन्ता के लिए बैठ गई। उधर उसी स्थल पर जहां पुरुष रथ पर बैठा अपनी स्त्री की प्रतीक्षा कर रहा था, वहां एक व्यन्तरीक स्थान था। पुरुष के रूप और यौवन पर वह व्यन्तरी अत्यन्त आसक्त हो गई। उसकी स्त्री को दूर देश में देखकर व्यन्तरी ने उसकी स्त्री जैसा रूप बनाया और रथ पर आकर सवार हो गई। स्त्री जब शौच से निवृत्त हो कर सामने आती हुई दिखाई दी तो व्यन्तरी ने पुरुष को कहा कि- " वह सामने कोई व्यन्तरी मेरा रूप धारण करके आ रही है। अतः आप रथ को द्रुत गति से ले चलें । " स्त्री ने जब पास आकर देखा तो वह चीख मार कर रोने लगी । व्यन्तरी के कहने पर पुरुष रथ को ले चला और पीछे से उसकी स्त्री रोती हुई इसके पीछे-पीछे भागने लगी और रो-रो कर कहने लगी कि - " यह कोई व्यन्तरी बैठी है, इसे उतार कर मुझे ले चलो। "
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