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वैद्य ने लाक्षारस से अवलिप्त एक सरट - गिरगिट को मिट्टी के भाजन विशेष में डाल कर उस व्यक्ति को विरेचन की औषधि दी और कहा "महोदय ! आप इस पात्र में शौच करें।" व्यक्ति ने उसी प्रकार किया। तब वैद्य उस पात्र को उठा लाया और प्रकाश में लाकर रुग्ण व्यक्ति को दिखाया । तब रोगी के मन में सन्तोष हुआ कि वह गिरगिट निकल आया है। तत्पश्चात् ओषधि का उपचार करने से उसका शरीर पुनः सबल हो गया । व्यक्ति के भ्रम को दूर करने का यह वैद्य की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
७. काक-वेन्नातट नगर में भिक्षा के लिए भ्रमण करते समय एक जैन मुनि को बौद्ध भिक्षु मिल गया। बौद्ध ने उपहास करते हुए जैन मुनि से कहा - " भो मुने! तेरे अर्हन्त सर्वज्ञ हैं और तुम उनके पुत्र, तो बतलाइये इस नगर में कितने वायस अर्थात् कौए हैं?" तब जैन मुनि ने विचारा कि यह धूर्तता से बात करता है, अत: इसे उत्तर भी इसी के अनुरूप देना ठीक रहेगा। ऐसा विचार कर वह उत्तर में बोला - "इस नगर में साठ हजार कौए हैं, यदि कम हैं तो . इनमें से कुछ बाहर मेहमान बन कर चले गए हैं। यदि अधिक हैं तो कहीं से आ गये हैं, यदि आपको इसमें शंका हो तो गिन लीजिए। " जैन मुनि के बुद्धिमत्ता पूर्ण उत्तर को सुनकर बौद्ध भिक्षु दण्ड से आहत हुए की भान्ति सिर को खुजलाता हुआ चला गया। यह जैन मुनि की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदहारण है।
८. उच्चार - मल परीक्षा - किसी समय की बात है कि एक व्यक्ति अपनी नवोढा रूप-यौवन सम्पन्न पत्नी के साथ कहीं ग्रामान्तर में जा रहा था। चलते हुए रास्ते में एक धूर्त व्यक्ति उन्हें मिल गया। मार्ग में वार्तालाप करते समय उसकी स्त्री धूर्त पर आसक्त हो गई और उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गई। तब धूर्त ने कहना शुरू कर दिया कि यह स्त्री मेरी है। दोनों आपस में विवाद करने लगे। दोनों ही स्त्री पर अपना अधिकार जतलाने लगे। परस्पर झगड़ा करते-करते वे न्यायालय में चले गये । न्यायाधीश ने दोनों की बात सुन कर स्त्री और धूर्त को अलग-अलग कर दिया। न्यायाधीश ने स्त्री के पति से पूछा - " कि तुमने कल क्या खाना खाया था?" उसने उत्तर दिया- " मैंने और मेरी स्त्री ने तिल के लड्डू खाये थे।" इसी प्रकार धूर्त से भी पूछा कि - " तूने क्या खाया था?" उसने कुछ भिन्न उत्तर दिया। न्यायाधीश ने स्त्री और धूर्त को विरेचन देकर जांच की तो स्त्री के मल में तिल देखे। इस आधार पर न्यायाधीश ने उसके असली पति को स्त्री सौंप दी और धूर्त को यथोचित दण्ड देकर अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि का परिचय दिया ।
९. गज - एक समय की बात है कि किसी राजा को एक अति बुद्धि-सम्पन्न मन्त्री की . आवश्यकता थी । उसने अतिशय मेधावी व्यक्ति की खोज करने के लिए एक बलवान हाथी को चौराहे पर बांध दिया और घोषणा कराई कि " जो व्यक्ति इस हाथी को तोल देगा उसे राजा बहुत बड़ी वृत्ति देगा ।" इस घोषणा को सुन कर एक व्यक्ति ने सरोवर में नाव डाल कर उसमें हाथी को ले जा कर चढ़ाया। उस हाथी के भार से नाव डूबी, वहां पर उस पुरुष
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