________________
नन्दा को वस्त्राभूषणों से सत्कारित कर के अभयकुमार के साथ बड़े समारोह से राजभवन में प्रवेश किया। अभयकुमार को मन्त्री पद पर स्थापित कर वे सब आनन्द पूर्वक रहने लगे।
यह अभयकुमार की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
५. पट-वस्त्र-एक समय की बात है कि दो व्यक्ति कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक बड़ा सुन्दर सरोवर था, वहां पर उनका विचार स्नान करने का हुआ। दोनों ने अपने-अपने वस्त्र उतारकर सरोवर के तट पर रख दिये और स्नान करने लगे। एक व्यक्ति उनमें से शीघ्र ही स्नान करके बाहर निकल आया और अपने साथी का ऊन का कम्बल ओढ़ कर चलता बना तथा अपनी सूती चादर को वहां पर छोड़ गया। जब दूसरे ने देखा कि मेरा साथी स्नान करके
और मेरा ऊर्णमय कम्बल ओढ़े चला जा रहा है, तो उसे पुकारा, "अरे ! यह मेरा कम्बल लिये क्यों भागा जा रहा है ?" उसने बहुत शोर मचाया परन्तु दूसरे ने उसकी एक भी न सुनी।
कम्बल का मालिक उसके पास भागा हुआ गया और कहा कि मेरा कम्बल मुझे दे दो। किन्तु दूसरा नहीं माना। तब परस्पर विवाद होने लगा। अन्ततोगत्वा यह झगड़ा न्यायालय में गया। दोनों ने अपना-अपना दावा न्यायाधीश के पास उपस्थित किया। परन्तु दोनों का साक्षी न होने से जज को फैसला करने में कुछ कठिनता अनुभव हुई। कुछ देर सोच कर न्यायाधीश ने दोनों व्यक्तियों के सिर में कंघी करवायी। कंघी के पश्चात् देखा कि जिसका कम्बल था, उसके सिर में ऊर्ण के बाल थे और दूसरे के सिर में कपास के तन्तु।
न्यायाधीश ने तुरन्त ही कम्बल लेकर कम्बल के स्वामी को दिलाया और दूसरे को उसके अपराध का यथोचित दण्ड देकर अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि का परिचय दिया।
६. सरट-गिरगिट-एक समय का वृत्तान्त है कि कोई व्यक्ति जंगल में जा रहा था, उसे शौच की हाजत हुई। वह शीघ्रता में एक बिल के ऊपर ही शरीर-चिन्ता की निवृत्ति के लिये बैठ गया। अकस्मात् वहां एक सरट आया और अपनी पूंछ से उसके गुदा भाग को स्पर्श करके बिल में घुस गया। शौचार्थ बैठे व्यक्ति के मन में यह ध्यान हो गया कि निश्चय ही यह जन्तु अधोमार्ग से मेरे शरीर में प्रविष्ट हो गया है। इसी चिन्ता में वह दिन-प्रतिदिन दुर्बल होता चला गया। उसने अपना बहुत उपचार भी कराया पर सब निष्फल ही रहा।
एक दिन वह किसी वैद्य के पास गया और उससे कहा कि "मेरा स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा है, आप इसका उपाय करें, ताकि मैं स्वस्थ हो जाऊं।" वैद्य ने उसकी नाड़ी परीक्षा की, हर प्रकार से उसकी जांच की, किन्तु उसे कोई बीमारी प्रतीत न हुई। तब वैद्य ने उस व्यक्ति से पूछा कि "आपकी यह दशा कब से चल रही है?" उस व्यक्ति ने आद्योपान्त समस्त घटित घटना कह दी। वैद्य ने निष्कर्ष निकाला कि इसकी बीमारी का कारण केवल भ्रम है। वैद्य ने रुग्ण से कहा-"आपकी बीमारी मैं समझ गया हूं, इस को दूर करने के लिए आपको सौ रुपया खर्च करना होगा।" उस व्यक्ति ने यह स्वीकार कर लिया। ..
* 310 * -