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________________ और कहां पर रहते हैं?" बच्चे के इस प्रश्न को सुन कर माता ने आद्योपान्त सारा वृत्तान्त उसे कह सुनाया और पिता का लिखा हुआ परिचय भी उसे दिखाया। माता के वचन सुन कर तथा अपने पिता का लिखा परिचय पढ़कर कुमार ने जान लिया कि मेरे पिता जी राजगृह के राजा हैं। यह जानकर अभयकुमार ने माताजी से कहा-"माता जी मैं सार्थ के साथ राजगृह में जाता हूं।" माता ने उत्तर में कहा-"पुत्र ! यदि तू कहे तो मैं भी वैसा ही करूं।" तब अभयकुमार, माता और सार्थ के साथ राजगृह की ओर चल पड़ा। राजगृह के बाहर अपनी माता को छोड़कर अभयकुमार नगर में चला, ताकि वहां देखे कि किस प्रकार का वातावरण है, और राजा के दर्शन कैसे हो सकते हैं। यह विचार कर वह नगर के भीतर चल दिया। नगर में प्रविष्ट होते ही एक निर्जल कूप के चारों ओर लोगों की भीड़ को देखा। अभयकुमार ने जाकर पूछा-"यहां लोग क्यों इकट्ठे हो रहे हैं?" लोगों ने कहा-"सूखे कुएं के अंदर राजा की स्वर्ण मुद्रिका गिर गई है। राजा ने घोषणा की हुई है, कि जो व्यक्ति कूप के तट पर खड़ा होकर अपने हाथ से अंगूठी को निकाल देगा, उसे महान पारितोषिक दूंगा।" ऐसा सुनने पर समीप में स्थित राज्यकर्मचारियों से पूछा, उन्होंने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अभय कुमार ने राजा की आज्ञा अनुसार अंगूठी को निकाल देने के लिए कहा। राजपुरुषों ने कहा-"यदि यही बात है तो निकाल दीजिए, राजा अपनी प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करेंगे।" अभयकुमार को तुरन्त उपाय सूझा और उसन कूप में पड़ी हुई अंगूठी को भली प्रकार से देखा। तथा वहां पड़ा हुआ तात्कालिक गोबर उठा कर उस पर डाल दिया। वह अंगूठी उस में चिपक गई। कुछ देर बाद जब वह गोबर सूख गया तो उस कूप में पानी भरवा दिया। पानी भरते ही सूखे गोबर के साथ अंगूठी भी ऊपर आ गई। अभयकुमार ने तट पर खड़े होकर वह गोबर पकड़ लिया और अंगूठी निकाल ली। तब लोगों ने बहुत प्रसन्नता प्रकट की और राजा को जाकर निवेदन कर दिया। राजाज्ञा से अभयकुमार को बुलाया गया और वह राजा के पास पहुंच गया। अभयकुमार ने अंगूठी राजा के सामने रख दी। राजा ने पूछा-"वत्स ! तू कौन है?" अभय बोला-"मैं आप का ही सुपुत्र हूं।" राजा ने पूछा, कैसे?" तब अभयकुमार ने सारा वृत्तान्त कह सुनाया। यह सुन कर राजा अत्यन्त हर्षित हुआ और उसे वत्सलता से उठा लिया तथा पितृ सुलभ स्नेह से उस के मस्तक पर प्यार से चुम्बन किया और पूछा-"पुत्र ! तेरी माता कहां हैं?" उत्तर में वह बोला-"वह नगर के बाहर है।" यह सुनकर राजा अपने परिजनों के साथ रानी को लेने के लिये चला। राजा के पहुंचने से पहले ही अभयकुमार ने सारा वृत्तान्त माता को सुना दिया। राजा के आगमन का समाचार सुन कर नन्दा अपना श्रृंगार करने लगी। परन्तु अभय कुमार ने उस से कहा-"माता जी ! कुलीन स्त्रियों को जो कि पति के विरह में जीवन व्यतीत करती हैं, अपने पति के दर्शन किये बिना श्रृंगार नहीं करना चाहिए।'' इतने में महाराजा श्रेणिक भी आ गये। रानी उन के चरणों पर गिर पड़ी। राजा ने *309
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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