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________________ अब भी मझधार में पड़ी हुई नैय्या के कर्णधार आप ही हैं।" जो राजा की आज्ञा थी, वह सब रोहक को अथ से इति तक कह सुनाई। रोहक ने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से ऐसा मार्ग निकाला कि एक पक्ष की तो क्या अनेक पक्ष भी व्यतीत हो जाएं तब भी मिण्ढा उतने ही वजन में रह सके, जितना कि आज है। इस उपाय से सब लोग प्रसन्न हो गए। रोहक के कथनानुसार वैसी व्यवस्था कर दी गई। एक ओर तो मिण्ढे को नित्य प्रति अच्छी-अच्छी खुराक देने लगे और दूसरी ओर उसके सामने व्याघ्र को बन्द पिंजरे में रख दिया, जिससे वह भयभीत बना रहे। भोजन की पर्याप्त मात्रा से तथा व्याघ्र के भय से न मिण्ढे को बढ़ने दिया और न घटने दिया। एक पक्ष व्यतीत होने के अनन्तर वह मिण्ढा जितने वजन का था, उतने ही वजन में उसे ग्रामीणों ने राजा को लौटा दिया। राजा ने उसे तोला। परिणामस्वरूप वह न घटा और न बढ़ा। रोहक की बुद्धि के चमत्कार से राजा अतीव प्रसन्न हुआ। . ४. कुक्कुट-कुछ दिनों के अनन्तर राजा ने रोहक की औत्पत्तिकी बुद्धि की परीक्षा के लिए एक मुर्गा जो कि अभी लड़ना नहीं जानता था, भेजा और साथ ही यह भी हुक्म कहलाकर भेजा कि बिना किसी दूसरे मुर्गे के इसे लड़ाकू बनाकर वापिस लौटाओ। राजा की ऐसी आज्ञा को सुनकर वे ग्रामवासी पुनः रोहक के पास आए और सारा वृत्तान्त रोहक को कह सुनाया। यह बात सुनकर रोहक ने एक स्वच्छ और बहुत बड़ा तथा • मजबूत दर्पण मंगवाया। वह दिन में चार-पांच बार उस दर्पण को मुर्गे के समक्ष रखता। उस दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब को अपना प्रतिद्वन्द्वी जानकर वह मुर्गा युद्ध करने लगता। क्योंकि पशु-पक्षियों को प्रायः ज्ञान विवेकपूर्वक नहीं होता। इस प्रकार अन्य मुर्गे के अभाव में भी उस मुर्गे को लड़ते हुए देखकर सभी लोग रोहक की बुद्धि की सराहना करने लगे। कुछ काल के पश्चात् वह मुर्गा राजकुक्कुट बनाकर राजा को सौंप दिया और कहा, महाराज ! अन्य मुर्गे के अभाव में भी इसे लड़ाकू बना दिया गया है। राजा ने उसकी परीक्षा की। सच्ची घटना से महाराजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। ५. तिल-अन्य किसी दिन फिर राजा के मन में रोहक की परीक्षा करने की आई। राजा ने रोहक के ग्राम निवासियों को अपने पास बुलाया और कहा-"तुम्हारे सामने जो तिलों की महाराशि है, उस की गणना किए बिना बतलाओ कि तिल कितने हैं। इतना स्मरण रखना कि अधिक विलंब न होने पाए।" यह सुनकर सब लोग किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रोहक के पास आए। राजाज्ञा का सर्व वृत्त रोहक को कह सुनाया। इस का उत्तर देते हुए रोहक ने कहा-"तुम राजा के पास जाकर कह देना कि राजन् ! हम गणित शास्त्री तो नहीं हैं। फिर भी आप की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए, इस महाराशि में तिलों की संख्या उपमा के द्वारा बतलाते हैं-इस नगरी के ऊपर बिल्कुल सीध में जितने * 301
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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