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________________ रहा हूं। अतः भोजन के लिए जल्दी घर चलो।" भरत ने कहा-"वत्स ! तुम तो सुखी हो, ग्रामवासियों पर क्या कष्ट आ पड़ा, इस बात को तुम कुछ भी नहीं जानते हो।" रोहक बोला-"पिता जी ! ग्राम पर क्या कष्ट आ पड़ा?" इसका उत्तर देते हुए भरत ने राजा की आज्ञा और उसकी कठिनाई, सब कुछ कह सुनाई। रोहक ने मुस्कराते हुए कहा-"क्या यही संकट है? इसे तो मैं अभी दूर किए देता हूं, इसमें चिन्ता करने जैसी क्या बात है?" ___आप लोग मण्डप बनाने के लिए शिला के चारों ओर तथा नीचे की ओर खोदो और यथास्थान अनेक आधार स्तम्भों को लगाकर मध्यवर्ती भूमि को खोदो। फिर चारों ओर अति सुन्दर दीवारें खड़ी कर दो, बस मण्डप बनकर तैयार हो जाएगा। यह है राजाज्ञा पालन करने का सुगम उपाय।" मण्डप निर्माण करने के सहज उपाय को सुनकर ग्राम के प्रमुख पुरुष परस्पर कहने लगे-यह उपाय सर्वथा उचित है, हमें इसी प्रकार करना चाहिए। इस प्रकार निर्णय करके सभी लोग अपने-अपने घरों को भोजन के लिए चल दिए। भोजन करने के पश्चात् वे सब उसी स्थान पर पुनः आ पहुंचे। शिला के नीचे उन्होंने एक साथ खुदाई का कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया। कुछ ही दिनों में वे मण्डप तैयार करने में सफल हो गए। राजा की आज्ञा के अनुसार उन्होंने महाशिला को उस मण्डप की छत बना दिया। : ___ तत्पश्चात् उन ग्रामीणों ने राजा के पास जाकर निवेदन किया कि महाराज ! आप श्री जी ने हमारे लिए जो आज्ञा दी थी, उसमें हम कितने सफल हुए हैं, इसका निरीक्षण आप स्वयं करलें। राजा ने अवकाश के समय स्वयं निरीक्षण किया और उसे देखकर राजा का मन प्रसन्न हो गया। फिर राजा ने उनसे पूछा-"यह किसकी बुद्धि का चमत्कार है?" इसका उत्तर ... देते हुए उन ग्रामीणों ने कहा-"यह भरत पुत्र रोहक की बुद्धि की उपज है और बनाने वाले हम हैं।" रोहक की हाजर जवाबी, नई सूझ-बूझ वाली बुद्धि से राजा बड़ा सन्तुष्ट हुआ। ३. मिण्ढा-(मेण्ढे का उदाहरण)-राजा ने अन्य किसी दिन रोहक की बुद्धिपरीक्षा के उद्देश्य से उस ग्राम में वरिष्ठ राजपुरुषों के द्वारा एक मिण्ढा भेजा और साथ ही यह सूचित किया कि "यह मिण्ढा जितने वजन का आज है, उतने ही वजन का एक पक्ष के बाद भी रहे, उस वजन से न घटे न बढ़ने पाए, ज्यों के त्यों वजनसहित हमें सौंप देना। यह सूचित कर वे राजपुरुष लौट गए। उपर्युक्त आज्ञा मिलते ही ग्रामनिवासी लोग चिंतित हुए। यदि इसे खाने को अच्छे-अच्छे पदार्थ देंगे तो निश्चय ही इसका वजन बढ़ेगा और यदि इसे भूखा रखेंगे तो नि:सन्देह घटेगा ही। इस विकट समस्या को सुलझाने के लिए बहुत कुछ सोचा-विचारा। किन्तु किसी प्रकार का उपाय न सूझने पर उन्होंने रोहक को बुलाया और कहा-"वत्स ! आप की प्रतिभाशक्ति बड़ी प्रबल है। पहले भी आपने ही राजदण्ड से हमें मुक्त कराया और * 300 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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