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इधर रोहक ने नदी के तीर पर बैठे हुए अपनी बुद्धिमत्ता से तथा बाल सुलभ चंचलता शुभ्र पर पूर्ण नगरी का नक्शा तैयार कर लिया । अकस्मात् उधर से राजा अपने साथियों से भटका हुआ एकाकी उसी मार्ग से चला आया । उसे अपनी चित्रित की हुई नगरी के ऊपर से आते देखकर रोहक ने कहा- " राजन् ! इस मार्ग से मत जाओ ।" इतना सुनते ही राजा बोला-‘“क्यों बच्चा ! क्या बात है ?" रोहक ने कहा- "यह राजभवन है, इसमें हर एक व्यक्ति बिना आज्ञा के प्रवेश नहीं कर सकता ।" यह सुनते ही उसके द्वारा चित्रित नगरी को राजा ने कौतुक वश बड़े गौर से देखा और रोहक से पूछा - " अरे वत्स ! क्या तुमने यह नगरी पहले भी कभी देखी है, या नहीं ?" रोहक ने कहा- " राजन् ! पहले कभी नहीं देखी, आज ही ग्राम से मैं यहां आया हूं।" राजा उस बालक की अपूर्व धारणा - शक्ति और उसके चातुर्य को देखकर आश्चर्य चकित हुआ और मन ही मन उसकी अद्भुत बौद्धिक शक्ति की प्रशंसा करने लगा।
कुछ समय के अनन्तर राजा ने रोहक बालक से पूछा - " वत्स ! तुम्हारा नाम क्या है ? और तुम कहां पर रहते हो ? रोहक बोला- “राजन् ! मेरा नाम रोहक है और यहां से निकटवर्ती नटों के अमुक ग्राम में मैं रहता हूं।" इस प्रकार दोनों की बात-चीत चल ही रही थी कि इत में रोहक का पिता भरत आ पहुंचा। और पिता-पुत्र दोनों अपने ग्राम की ओर चल पड़े। राजा भी अपने महल में चला आया। अपने नित्य के राज्यकार्य से निवृत्त होकर राजा सोचने लगा, कि मेरे चार सौ निन्यानवें (499) मंत्री हैं। यदि इनमें एक कुशाग्र बुद्धिशाली महामंत्री और हो जाए तो मैं सुखपूर्वक राज्य चलाने में समर्थ हो सकूंगा। क्योंकि अन्य बल न्यून होने पर भी केवल बुद्धिबल से राजा निष्कण्टक राज्य भोग सकता है और सहज ही शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार सोच-विचार कर राजा ने कई विधियों से रोहक की बुद्धि की परीक्षा ली।
२. शिला - सर्व प्रथम राजा ने उस ग्राम में रहने वाले ग्रामीणों को बुलाकर आज्ञा दी 'तुम सब मिलकर एक ऐसा मण्डप बनाओ जो कि राजाधिराज के योग्य हो, और ग्राम के - बाहर जो महाशिला है, उसे बिना उखाड़े ही वह मण्डप का आच्छादन बन जाए ऐसा उपक्रम करो। "
राजा की उपर्युक्त आज्ञा को सुनकर सभी ग्रामवासी चिन्तातुर हो गए। वे सब पंचायतघर में एकत्रित होकर परस्पर विचार-विमर्श करने लगे कि अब हमें क्या करना चाहिए? राजा की आज्ञा भी अनुलंघनीय है और उसका यथोचित पालन करना हमारे लिए असंभव लगता है। आदेश पूरा न करने से राजा अवश्य प्रबल दण्ड देगा। इस प्रकार विचार करते-करते . मध्याह्नकाल हो आया।
उधर रोहक पिता के बिना न खाना खाता है और न पानी पीता है, वह भूख से व्याकुल होकर पिता के पास उसी सभा में आ पहुंचा और बोला - " पिता जी ! मैं भूख से पीड़ित हो
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